मैं बचपन से नहीं हूँ
औरों जैसा, मेरा नजरिया नहीं रहा
दूसरे की तरह, न ही मुझे आवेग मिले
समान सोते से; मेरे दुखों का
उद्गम था सबसे अलग;
मेरे हृदय में नहीं जागा
आनंद समान धुनों से;
और जिनसे भी मैंने प्यार किया,
अकेले मैंने प्यार किया।
फिर - मेरे बचपन में,
प्रचंड जीवन की भोर में - मैंने पाया
हर अच्छाई और बुराई की गहराई से
एक रहस्य जो अब भी मुझे जकड़ता है;
झड़ी या फव्वारे से,
पर्वत की लाल चोटी से,
सूरज से जिसने मुझे लपेटा
अपने सुनहरे रंग की शरद आभा में,
आकाश में उड़ती, पास से
गुजरती बिजली से
गरज और तूफान से,
और उस बादल से जिसने रूप धरा
मेरे विचार से दानव का।
(बाकी स्वर्ग का रंग नीला था तब।)