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सांध्य तारा / एडगर ऐलन पो

गर्मियों की दोपहर थी,
और आधी रात का समय;
और तारे अपनी कक्षाओं में,
चमकते थे पीले से
उज्जवल, शीतल चंद्रमा की चाँदनी में,
जो था अपने दास ग्रहों के बीच,
स्वयं आकाश में,
लहरों पर थी उसकी किरणें।
मैंने ताका कुछ पल
उसकी सर्द मुस्कान को;
उदासीन, बहुत ही भावहीन लगी मुझे
उधर से गुजरा कफन जैसा
एक लोमश बादल,
और मैं मुड़ा तुम्हारी ओर,
गर्वीले सांध्य तारे,
तुम्हारी सुदूर महिमा में
और तुम्हारी किरणें ज्यादा प्रिय होंगी;
क्योंकि मेरे दिल की खुशी
गर्वीला हिस्सा है तुम जिसे
रात को आकाश में वहन करते हो,
मैं और भी सराहता हूँ
तुम्हारी दूरस्थ आग को,
उस ठंडी अधम चाँदनी से बढ़कर।

मेरी माँ के लिए / एडगर ऐलन पो

क्योंकि मुझे लगता है कि, ऊपर स्वर्ग में,
आपस में फुसफुसाते स्वर्गदूत,
नहीं पा सकते, उनके प्यार के प्रज्वलित शब्दों के बीच,
"माँ" जितना कोई अनुरागी शब्द
इसलिए आपको उस प्यारे नाम से
मैंने बहुत पहले पुकारा था -
आप जो मेरी माँ से बढ़कर हैं मेरे लिए
और मेरे अंतरतम को भर देती हैं,
जहाँ मृत्यु ने स्थापित कर दिया आपको
मेरी वर्जीनिया की आत्मा को मुक्त करने हेतु।
मेरी माँ - मेरी अपनी माँ, जिनकी मृत्यु जल्दी हो गई,
सिर्फ मेरी माँ थी; मगर आप,
उसकी माँ थी जिससे मैंने बेहद प्रेम किया
और इस तरह ज्यादा प्रिय हैं उस माँ से जिसे मैं जानता था
उस अनंतता के चलते जिससे मेरी पत्नी
प्रिय थी मेरी आत्मा को उसकी अपनी आत्मा -
जीवन से कहीं ज्यादा।


एकाकी / एडगर ऐलन पो

मैं बचपन से नहीं हूँ
औरों जैसा, मेरा नजरिया नहीं रहा
दूसरे की तरह, न ही मुझे आवेग मिले
समान सोते से; मेरे दुखों का
उद्गम था सबसे अलग;
मेरे हृदय में नहीं जागा
आनंद समान धुनों से;
और जिनसे भी मैंने प्यार किया,
अकेले मैंने प्यार किया।
फिर - मेरे बचपन में,
प्रचंड जीवन की भोर में - मैंने पाया
हर अच्छाई और बुराई की गहराई से
एक रहस्य जो अब भी मुझे जकड़ता है;
झड़ी या फव्वारे से,
पर्वत की लाल चोटी से,
सूरज से जिसने मुझे लपेटा
अपने सुनहरे रंग की शरद आभा में,
आकाश में उड़ती, पास से
गुजरती बिजली से
गरज और तूफान से,
और उस बादल से जिसने रूप धरा
मेरे विचार से दानव का।
(बाकी स्वर्ग का रंग नीला था तब।)

खामोशी / एडगर ऐलन पो

'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमैला है। वह सागर की ओर नहीं बहता, बल्कि सूरज की लाल आँखों के नीचे एक ही जगह पर उबलता रहता है। नदी के कोमल तटों पर मीलों तक पीले कमलों का रेगिस्तान फैला है - ये कमल दैत्याकार हैं। वे उस एकाकीपन में एक-दूसरे पर झुके आहें भरते रहते हैं और अपनी लंबी और भूतों की-सी गरदनें आसमान की ओर फैलाए रहते हैं, और सिर हिलाते रहते हैं। उनके हिलने से एक मद्धिम-सी ध्वनि बराबर उठती रहती है।'

'पर उनके राज्य की भी सीमा है - अँधेरे, भयावह, ऊँचे-ऊँचे जंगलों की सीमा। वहाँ, छोटे पौधे हमेशा हिलते रहते हैं। लेकिन पूरे स्वर्ग में हवा नहीं चलती। और ऊँचे आदिम पेड़ तीखी आवाजें करते हुए इधर-उधर झूमते रहते हैं और उनकी ऊँची चोटियों से चिरंतन ओस कण बूँद-बूँद कर टपकते रहते हैं। जड़ों के पास अजीब जहरीले फूल कष्टमय निद्रा में कराहते रहते हैं। और ऊपर भूरे बादल, तीखे शोर के साथ, हमेशा पश्चिम की ओर भागते रहते हैं। लेकिन पूरे स्वर्ग में हवा नहीं चलती।'

'रात और बारिश। पड़ रही थी, तो बारिश थी, पड़ चुकी, तो खून था और मैं ऊँचे कमलों के बीच खड़ा था और बारिश मेरे सिर पर पड़ रही थी। और निर्जनता में कमल आहें भर रहे थे।'

'और अचानक भीनी धुंध में से चाँद निकल आया - लाल-लाल चाँद। मेरी नजर नदी के तट पर की एक भूरी, बड़ी चट्टान पर पड़ी - उसके सामने वाले भाग पर कुछ अक्षर खुदे हुए थे। मैं कमलों के बीच चलने लगा और किनारे के निकट आ गया। पर मैं अक्षर पढ़ नहीं सका। मैं वापस लौट रहा था कि चाँद पूरी लालिमा के साथ चमक उठा। मैंने चट्टान को देखा उस पर लिखा था - बयाबान।'

'और मैंने ऊपर की ओर देखा। चट्टान की चोटी पर एक आदमी खड़ा था। यह देखने के लिए कि वह क्या करता है, मैंने अपने आपको कमलों के पीछे छुपा लिया। वह आदमी कद में लंबा-ऊँचा था और कंधों से लेकर पाँवों तक रोमन चोंगे में लिपटा हुआ था। उसके अंगों की रेखाएँ अस्पष्ट थीं। लेकिन उसका चेहरा किसी दैवी पुरुष का-सा था। उसका माथा चौड़ा था, उसकी आँखों में परेशानी थी। उसके गालों पर पड़ी कुछ झुर्रियों ने ही मुझे अनेक गाथाएँ सुना दीं - वैसे वह बेचैन था और एकांत चाहता था।

'तब उसने आसमान से अपनी नजरें हटा लीं और उसने मरुभूमि की नदी जेअर और उसके पीले पानी को देखा। फिर उसने मुरझाए कमलों के विस्तार पर नजर डाली। तब उसने कमलों की आहों की ओर कान लगाया। और मैं छुपा-छुपा सब कुछ देखता रहा।

'तब मैं कमलों के बीच, नीचे छुपकर चलने लगा और कमलों के उस जंगल में आगे बढ़ता गया और मैंने वहाँ रहनेवाले हिप्पो पोटेमसों को बुलाया। उन्होंने मेरी आवाज सुनी और आ गए और चाँद के नीचे तीखी आवाज में गुर्राने लगे... वह दैवी पुरुष तब भी चट्टान पर बैठा रहा... अपने एकांत में काँपता।

'तब मैंने पंच तत्वों को तूफान का शाप दे दिया। और जहाँ पहले हवा भी नहीं चल रही थी, वहाँ अब तूफानी हवाएँ एकत्र होने लगीं। आसमान तूफानी हवाओं से हहराने लगा - और उस पुरुष के सिर पर बारिश की बूँदें गिरने लगीं - और नदी में बाढ़ आ गई - ? और नदी में झाग उठने लगा - और कमल जोर-जोर से चीखने लगे - और हवा की तेजी के आगे जंगल धराशायी होने लगा - तूफान बढ़ता गया - बिजली गिरने लगी - और चट्टान अपनी नींव तक दहल गई। और मैं छुपा-छुपा उस पुरुष को देखता रहा। वह अपने एकांत में काँप रहा था। रात बीतती गई। वह चट्टान पर बैठा रहा।

'तब मुझे गुस्सा आ गया और मैंने फिर शाप दे दिया - नदी को, कमलों को, हवा को, जंगल को, आसमान को, तूफान को, कमलों की आहों को - सबको खामोशी का शाप। वे अभिशप्त हुए और खामोश हो गए। चाँद ने आसमान में ऊपर चढ़ना छोड़ दिया - तूफान मर गया - बिजली थम गई - बादल लटके रह गए - पानी तल पर चला गया और वहीं रुक गया - वृक्षों ने झूलना छोड़ दिया - कमलों की आहें रुक गईं - उनकी आवाजें भी मर गईं - और उस अनंत मरुथल में किसी परछाईं की कोई आवाज नहीं रही। और मैंने चट्टान पर खुदे अक्षरों को देखा। वे बदल गए थे - अब अक्षर यों थे - खामोशी।

'और मेरी नजर उस पुरुष के चेहरे पर गई। उसके चेहरे पर भय की छायाएँ थीं। जल्दी से उसने अपने हाथों से अपने सिर को उठाया और चट्टान पर खड़ा हो गया और सुनने लगा। पर पूरे अनंत विस्तार में कोई स्वर नहीं था और चट्टान पर खुदे हुए अक्षर थे - खामोशी। और पुरुष काँप उठा। उसने मुँह घुमा लिया और तेजी से वहाँ से भाग गया। उसके बाद मैंने उसे नहीं देखा।'

मकबरे की छाँह में बैठकर शैतान ने उस दिन जो कहानी मुझे सुनाई, उसे मैं सबसे आश्चर्यजनक कहानी मानता हूँ। और कहानी का अंत होते ही शैतान मकबरे की दरार में जाकर लेट गया और हँसने लगा। पर मैं शैतान के साथ हँस नहीं सका और क्योंकि मैं हँस नहीं सका, इसलिए उसने मुझे शाप दे दिया।

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