Search Gurusum

नन्हा राजकुमार / सैंतेक्जूपेरी

नन्हा राजकुमार

एंटोनी दे संतएक्सुपेय

बाल साहित्य; उपन्यास

नन्हा राजकुमार एक मशहूर बाल नोविला या नावेल है | यह मूल रूप से फ्रेंच भाषा मैं लिखी पुस्तक है| अब तक १०० से जयादा भाषाओँ मैं इस का अनुवाद हो चूका है | बच्चों और बडों मैं यह पुस्तक समान रूप से लोकप्रीय है | यह कहानी है एक बच्चे की जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर यात्रा करता हुआ धरती पर पहुँच जाता है और हमें हमारी जिंदगी समझा जाता है | यह छोटी सी पुस्तक सभी को पढ़नी चाहिए |


नन्हा राजकुमार


सैंतेक्जूपेरी 

अनुवादः लाल बहादुर वर्मा 

नन्हा राजकुमार (मूल फ्रेंच से अनुवाद)


लेओं वेर्थ को


बच्चों मैं क्षमा चाहता हूं क्योंकि मैंने यह पुस्तक एक वयस्क को समर्पित की है। कारण? यह वयस्क दुनिया में मेरा सबसे प्रिय दोस्त है। फिर वह सब कुछ समझ सकता है - बच्चों की पुस्तकें भी। एक और बात है, वह इस वक्त फ्रांस में भूख और सर्दी से जूझ रहा है। ये सब कारण पर्याप्त न लगें तो मैं पुस्तक अपने मित्र के बचपन को समर्पित कर सकता हूं। आखिर सारे वयस्क कभी बच्चे ही तो थे (पर कहां याद रहती है इसकी उन्हें) तो समर्पण के शब्द बदल देता हूं -


लेओं वेर्थ को जब वह बच्चा था!



1

मैं कोई छः साल का रहा होऊंगा। एक किताब मिल गई - जंगल की सच्ची कहानियां। उसमें एक अद्भुत तस्वीर थी। अजगर एक जंगली जानवर को निगल रहा था। यह रही वह तस्वीर।



तब से जंगल की इस भयानक घटना पर मैं बराबर सोचता रहा और एक दिन अपनी रंगीन पेंसिल से मैंने पहली बार एक चित्र बनाया।




अपना यह चित्र मैंने बड़े लोगों को दिखाया। मैंने पूछा, "इसे देखकर डर लगता है या नहीं?" उन्होंने उत्तर दिया, 'भला टोपी से डर क्यों लगेगा?' मैंने टोपी तो बनाई नहीं थी। मैंने एक अजगर बनाया था जो हाथी को निगल कर पचा रहा था। आखिर मैंने सांप के पेट के अंदर की भी तस्वीर बनाई। ताकि ये बड़े लोग भी समझ सकें। ये बिना समझाये कुछ नहीं समझते। मेरा दूसरा चित्र ऐसा था।




उन लोगों ने मुझे सलाह दी कि मुझे अजगर के चित्र बनाना छोड़कर भूगोल, इतिहास, गणित और व्याकरण में मन लगाना चाहिए। और इस तरह उस नन्ही सी उम्र में ही मुझे अपनी महान कलाकार बनने की इच्छा त्याग देनी पड़ी। मेरे पहले दो चित्रों की असफलता पर ही मुझे हतोत्साहित कर दिया गया। ये बड़े लोग अपने आप कुछ नहीं समझते और बच्चों के लिए इन्हें समझाते रहना आसान नहीं। 


अब मुझे दूसरा पेशा चुनना पड़ा। और मैंने हवाई जहाज चलाना सीख लिया। सारी दुनिया में उड़ता फिरा। भूगोल पढ़ना काफी काम आया। चीन हो या अरीजोना, एक ही झलक में पहचान सकता था। यदि हवाई जहाज भटक जाए तो भूगोल पढ़ना बहुत काम आता है। अपनी उड़ानों के दौरान अनेक महत्वपूर्ण लोगों से परिचय हुआ। मैंने उनके साथ काफी समय बिताया। उन्हें करीब से देखा-समझा। पर मेरी उनके बारे में राय नहीं बदली।


जब भी कोई महानुभाव मिलते जो थोड़े जागरूक लगते तो मैं उन्हें अपना बनाया हुआ पहला चित्र, जिसे मैं हमेशा पास रखता था, दिखाता। मैं देखना चाहता था कि वे इसे समझ पाते हैं या नहीं। हमेशा यही उत्तर मिलता, “यह तो टोपी है।" फिर मैं न उनसे अजगर की बात करता, न जंगल की, न सितारों की। मैं उन्हीं की तरह मौसम, राजनीति या फैशन की बातें करने लगता और वे मुझ जैसे समझदार व्यक्ति से मिल कर खुश होते। 







2

छः साल पहले तक बिना किसी से मन की बात किए, एकाकी सा, जीता रहा। एक दिन सहारा के रेगिस्तान में मेरा जहाज बिगड़ गया और मुझे उतरना पड़ा। न तो मेरे साथ कोई मिस्त्री था न यात्री। झख मार कर अकेले ही उसे ठीक करने की बात सोची। मेरे लिए जीवन-मृत्यु का प्रश्न था। मेरे पास मुश्किल से आठ दिनों के लिए पीने का पानी था। 


पहली शाम, बस्ती से हजारों मील दूर, रेत पर लेटा, लग रहा था सागर में जहाज से टूटा हुआ बहता हुआ एक तख्ता हूं। कल्पना कीजिए कि ऐसे में मुझे कितना आश्चर्य हुआ होगा जब तड़के एक अजीब सी कच्ची सी आवाज ने मुझे जगाया। 


"सुनिए! मेरे लिए एक भेड़ की तस्वीर बना दीजिए।" 


"एक भेड़ का चित्र..... " 


मैं तो उछल पड़ा जैसे पतीले पर पैर पड़ गया हो। आंख मली और ठीक से देखा। एक विचित्र और छोटा सा लड़का मुझे चुपचाप निहार रहा था। बाद में मैंने याद करके उसकी जो सबसे अच्छी तस्वीर बनाई वह यह रही।



वह इस तस्वीर से कहीं अधिक आकर्षक था। तस्वीर उसकी जैसी नहीं बनी तो मेरा क्या दोष। बचपन में ही बुजुर्गों ने हतोत्साहित जो कर दिया था। तब से मैं अजगर के अलावा कुछ भी बनाना नहीं सीख पाया। 


अचंभे में पड़ा मैं इस छाया सी आकृति को खुली-खुली आंखों से देखता रहा। भूलिऐ मत कि मैं बस्ती से हजारों मील दूर था और यह लड़का न तो भटका हुआ लगता था न भूखा, प्यासा या डरा हुआ। जरा भी नहीं लगता था कि वह किसी निर्जन में खो गया है। आखिर जब बोली निकली तो मैंने कहाः “पर ... पर तू यहां क्या कर रहा है?" और धीरे से जैसे एक भारी बात कहनी हो, उसने दोहराया, "मेरे लिए एक भेड़ का चित्र बना दीजिए।" सब कुछ अजीब और रहस्यमय लग रहा था। बात टालने का साहस नहीं हुआ। निर्जन स्थान में जबकि सर पर मौत मंडरा रही हो यह चित्र बनाने की बात हास्यास्पद लगी, फिर भी मैंने जेब से कागज और कलम निकाल लिया। लेकिन मैंने तो विशेषकर इतिहास, भूगोल और व्याकरण पढ़ी थी। मैंने थोड़ा झुंझला कर कहा कि, "मुझे चित्र बनाने नहीं आते।" 


"कोई बात नहीं भेड़ बनाओ न!" उसने जवाब दिया। 


मुझे भेड़ बनाना नहीं आता था। मैंने वही चित्र बनाया जो आता था। मैं स्तब्ध रह गया जब वह बोलाः 


"नहीं, नहीं। मुझे अजगर के पेट में बंद हाथी नहीं चाहिए। अजगर खौफनाक होता है और हाथी बड़ा ही भारी भरकम। मेरे घर तो सब कुछ छोटा-छोटा सा है। मुझे भेड़ ही चाहिए।" आखिर मैंने बनाया।




उसने ठीक से देखा और बोला, “यह तो अभी से बीमार है, दूसरी बनाओ।" 


फिर मैंने बनाया।




मेरे दोस्त के होठों पर एक हल्की सी सहानभूतिपूर्ण हंसी खेल गई। 


"देखो न। ... यह भेड़ थोड़े ही है। यह तो भेड़ा है! इसके तो सींग हैं।" 


मैंने फिर बनाया।




उसने फिर नहीं स्वीकारा। 


"यह तो बूढ़ा है। बहुत दिन जियेगा थोड़े!" 


मुझे अपने जहाज़ की मोटर ठीक करनी थी। धीरज टूट गया। मैंने घसीट कर यह चित्र बनाया। और झिड़कता हुआ बोला, “यह रहा बक्सा, तुम्हारी भेड़ इसी के अंदर है।"



लेकिन मुझे थोड़ा अचरज हुआ अपने इस नन्हें से जज के मुंह पर एक चमक देखकर "मुझे बिल्कुल ऐसा ही चाहिए था। इसके लिए बहुत सी घास चाहिए क्या?" 


"क्यों?"


"क्योंकि मेरा घर बहुत छोटा है।" 


"उतना बहुत है। मैंने तुम्हें एक छोटी सी भेड़ दी है।" 


उसने चित्र पर सिर झुकाया।


"इतनी छोटी थोड़ी ही है .... देखो? सो रही है।" और यह थी मेरी पहली मुलाकात उस उन्हें राजकुमार से।







3

मुझे यह समझने में कई दिन लग गए कि आखिर वह नन्हा राजकुमार है कौन, कहां से आया है। वह मुझसे तो बहुत सारे सवाल पूछता था पर लगता था कि मेरी बिल्कुल नहीं सुनता। मुझे धीरे-धीरे उसकी बातों से सब कुछ पता चला। इस प्रकार जब उसने मेरा जहाज पहली बार देखा (जहाज का चित्र बनाना मेरे वश की बात नहीं) तो पूछ बैठा, “यह क्या चीज है?" "यह कोई चीज थोड़े ही है। यह उड़ती है। जहाज है जहाज – मेरा जहाज।"


मैंने बड़े गर्व से बताया कि, "मैं आकाश में उड़ सकता हूं।" मेरी बात सुनते ही वह चिल्ला पड़ा, "यह क्या? तू आसमान से गिरा है!"


"हां", मैंने सकुचाते हुए कहा। 


"यह तो बड़े मजे की बात है।"


और वह खिलखिला कर हंसा। मुझे उसका हंसना बहुत खला। मन ही मन मैं चाहता हूं कि लोग मेरे दुख से दुखी हों। मेरी मनःस्थिति को बिना समझे वह बोला, 


"तू भी आसमान से आया है? तेरा घर किस ग्रह पर है?" 


उसकी रहस्यमयी उपस्थिति मेरी समझ में आने लगी। मैंने पूछा, "तो तू किसी दूसरे ग्रह से आया है क्या?" 


उसने जवाब नहीं दिया। मेरा जहाज देखता हुआ सर हिलाता रहा, "इस तरह तू इस जहाज पर कहीं बहुत दूर से नहीं आ सकता... " 


और वह बड़ी देर तक कल्पना लोक में डूबा रहा। फिर जेब से भेड़ का चित्र निकाल कर उसे ऐसे निहारने लगा जैसे वह कोई खजाना हो।

 

जरा सोचिए इसकी बातों में किसी दूसरे ग्रह की चर्चा से मुझे कितना कौतुहल हुआ होगा। मैंने और भी जानना चाहा, "मेरे नन्हें राजकुमार! कहां से आया है तू? तेरा घर कहां है? तू मेरी भेड़ कहां ले जाना चाहता है?" 


थोड़ी देर की तन्मयता के बाद वह बोला, “तूने मुझे जो बक्सा दिया है उसमें एक अच्छाई है - रात को वह मेरी भेड़ के लिए घर का काम देगा।" 


"बिल्कुल ठीक! और यदि तू भला लड़का है तो मैं तुझे एक रस्सी और एक खूटा भी दे दूंगा, उसे बांधने के लिए।" 


बांधने की बात सुनकर वह हतप्रभ सा हो गया, “बांधने के लिए? अजीब बात है!" । 


"लेकिन अगर तूने उसे बांधा नहीं तो वह जहां मन करे चली जायेगी और खो जायेगी।" 


मेरा नन्हा दोस्त फिर खिलखिलाया, "मगर जाएगी कहां?" 


"कहीं भी नाक की सीध में।" 


विषाद भरे स्वर में उसने कहा, "कोई बात नहीं। मेरा ग्रह बहुत छोटा है। वहां सीधे दूर तक नहीं जा सकता कोई।" 







4

इस प्रकार मुझे दूसरी बात का पता चला कि वह जिस ग्रह से आया है वह मुश्किल से इतना बड़ा है जितना एक घर।






इससे मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। मैं जानता था कि पृथ्वी, बृहस्पति, मंगल, शनि जैसे बड़े-बड़ें ग्रहों के अलावा सैकड़ों ऐसे छोटे, बेनाम ग्रह हैं जिन्हें दूरबीन से भी देखने में कठिनाई होती है। जब कोई वैज्ञानिक किसी एक ग्रह की खोज करता है तो वह उसकी पहचान के लिए एक संख्या चुन लेता है, जैसे नक्षत्र 32611




मेरे इस विश्वास के कई कारण हैं कि जिस नक्षत्र से वह आया था उसका नाम बी - 612 होगा। उस नक्षत्र को केवल एक बार 1901 में एक तुर्क वैज्ञानिक ने अपनी दूरबीन से देखा था। 



उसने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपनी खोज का भव्य प्रदर्शन किया था। पर उसकी पोशाक देखकर उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया। वयस्क लोग ऐसे ही होते हैं। 


बी - 612 के नक्षत्र अच्छे रहे होंगे क्योंकि तुर्की के एक तानाशाह ने, शायद इसी घटना के कारण, कानून बना दिया कि जो यूरोपीय ढंग के कपड़े नहीं पहनेगा उसे मौत की सजा मिलेगी। उस वैज्ञानिक ने 1920 में फिर प्रदर्शन किया। इस बार उसने अपने को सूट-बूट से सजा रखा था और सबने उसकी बात मान ली थी।


वयस्क लोगों के कारण ही मुझे इस नक्षत्र और उसकी संख्या के बारे में इतने विस्तार से बताना पड़ा। बड़े लोगों का संख्याओं में बड़ा विश्वास होता है। उनसे आप किसी नए दोस्त के बारे में बातें करें तो वे कभी कोई सार्थक प्रश्न नहीं पूछेगे। वे कभी नहीं पूछेगे, "उसकी आवाज कैसी है? कौन से खेल खेलता है? तितलियां इकट्ठी करता है?" पूछेगे, “क्या उम्र है? उसके कितने भाई हैं? उसका वजन कितना है? उसके पिता कितनी तनख्वाह पाते हैं? यही सब जानने में विश्वास होता है उनका।" उनसे कहो, "मैंने गुलाबी ईंटों का एक मकान देखा है जिसकी खिड़कियों पर जेरेनियम के फूल लगे हैं, छत पर कबूतर गुटर-गूं करते हैं!" तो वे ऐसे घर की कल्पना भी नहीं कर पायेंगे। उनसे कहना चाहिए, “मैंने एक लाख की कीमत वाला घर देखा है।" झट बोलेंगे, “कितना सुंदर!" इसी तरह अगर उनसे कहो, “नन्हा राजकुमार बहुत आकर्षक था, हंसता था, एक भेड़ चाहता था," और यह उसके होने के लिए - उसके अस्तित्व को साबित करने के लिए काफी है - क्योंकि कोई होगा तभी तो भेड़ मांगेगा, तो ये लोग कंधा उचका कर तुम्हें बच्चा समझ लेंगे। लेकिन यदि यह कहा जाए कि जिस ग्रह से वह आया था उसका नाम बी - 612 है, तो वह मान जायेंगे। और फिर कोई सवाल नहीं पूछेगे। ऐसे होते हैं ये लोग, उनसे ऐसी ही उम्मीद रखनी चाहिए। बच्चों को बड़े लोगों के प्रति बड़े धैर्य से काम लेना पड़ता है। 


ठीक ही तो है कि हम लोग, जिन्हें जीवन की समझदारी है, संख्याओं की परवाह नहीं करते। मुझे यह किस्सा परियों की कहानी की तरह शुरू करना चाहिए था। मुझे कहना चाहिए था, "एक था नन्हा राजकुमार जो एक ऐसे ग्रह में रहता था जो उससे थोड़ा ही बड़ा था उसे एक दोस्त चाहिए था...." जो लोग जीवन को समझते हैं उन्हें यह ज्यादा सच लगता है। 


मैं नहीं चाहता कि कोई मेरी किताब को हंसी में उड़ा दे। मुझे इन यादों को संजोने में कितना दुख हो रहा है। मेरे दोस्त को अपनी भेड़ लेकर गए छः साल हो चुके हैं और मैं इसलिए लिख रहा हूं कि उसे भूलें न। दोस्त को भूलना दुखदायी होता है, और सबके दोस्त नहीं होते। मैं भी वयस्कों की तरह हो सकता था - उन्हीं की तरह संख्याप्रिय। इसलिए मैंने रंगीन पेन्सिलें खरीदी थीं। इस उम्र में चित्रकारी फिर से शुरू करना कठिन होता है। विशेषकर जब किसी ने छः साल की उम्र में बस अजगर के चित्र बनाये हों। फिर भी मैं यथासंभव मिलती-जुलती तस्वीरें बनाने की कोशिश करूंगा। वैसे मुझे विश्वास नहीं कि मुझे पूर्ण सफलता मिल पाएगी। राजकुमार से संबंधित चित्र बनाता हूं तो एक ठीक बनता है तो दूसरा बिगड़ जाता है। माप गलत हो जाते हैं। एक जगह राजकुमार छोटा बन जाता है, दूसरी जगह बड़ा। उसकी पोशाक के रंगों के बारे में भी हिचकता हूं। इस तरह अच्छे-बुरे चित्र बनाता, टटोलता सा आगे बढ़ता रहता हूं। मुझे लगता है कि विवरण संबंधी गलतियां ही हो जाएंगी क्योंकि मेरा दोस्त कभी पूरी बात नहीं बताता था। शायद वह मुझे अपने ही जैसा अक्लमंद समझता था। लेकिन क्या करूं मुझे उसकी तरह बक्से के अंदर भेड़ नहीं दिखाई देती। शायद मैं वयस्क की तरह हो गया हूं - निश्चित ही बड़ा हो रहा हूं।







5

हर दिन मुझे यास हुआ। इसी तरहसे उत्पन्न खतरे से कोई बड़ी हर दिन मुझे कुछ-न-कुछ पता चलता - कभी ग्रह, कभी वहां से प्रस्थान, कभी यात्राओं के बारे में। यह सब धीरे-धीरे अनायास हुआ। इसी तरह राजकुमार से मुलाकात के तीसरे दिन मुझे 'बाओबाब' (गोरखचिंच) नामक पेड़ के लगातार बढ़ने, फैलने और उससे उत्पन्न खतरे के बारे में पता चला - और यह भी भेड़ की ही वजह से क्योंकि उसने मुझसे अचानक इस तरह पूछा जैसे उसे कोई बड़ी शंका हो।


"यह सच है ना कि भेड़ झाड़ियां भी खाती हैं।" 


"हां, खाती तो हैं।" 


"चलो अच्छा हुआ।" 


मैं समझा नहीं कि भेड़ के झाड़ी खाने में क्या खास बात है। लेकिन तभी नन्हें राजकुमार ने कहा, "तब तो वह बाओबाब के पेड़ भी खाती होगी?" 


मैंने उसे बताया कि बाओबाब झाड़ की तरह नहीं होते। वे तो गिरजाघरों जैसे ऊंचे और विशाल होते हैं और अगर वह हाथियों का झुंड भी आ जाए तब भी वे केवल एक पेड़ को भी पूरी तरह खाकर खत्म नहीं कर सकते।



हाथियों के झुंड की बात सुनकर हंसी आ गई। उसने कहा, "उन्हें एक के ऊपर एक रखना पड़ेगा न.....।" 


उसने तुरंत बुद्धिमत्ता पूर्ण बात कही, "बड़े होने से पहले तो बाओबाब छोटे होते होंगे?" 


"बिल्कुल ठीक। लेकिन तू क्यों चाहता है कि तेरी भेड़ छोटे बाओबाब खाएं!" 


उसने उत्तर दिया, “वाह! इतना भी नहीं समझते?" मुझे तो उस बात को समझने में काफी अक्ल लगानी पड़ी। वास्तव में नन्हे राजकुमार के ग्रह पर सारे ग्रहों की तरह अच्छे और बुरे दोनों तरह के पौधे थे। अच्छे पौधों के अच्छे और बुरे पौधों के बुरे बीज भी होते थे। लेकिन बीज तो दिखाई नहीं पड़ते। वे तब तक पृथ्वी की रहस्यमय गर्भ में पड़े सोते रहते हैं जब तक वह रहस्य किसी बीज के माध्यम से प्रस्फुटित नहीं होता। तब वह बीज अंगड़ाई लेता, हल्के-हल्के सूरज को निहारता एक नन्हें, कोमल और मनमोहक अंकुर के रूप में प्रकट होता है। यदि अंकुर मूली या गुलाब का हुआ तो उसे पनपने के लिए छोड़ा जा सकता है। लेकिन यदि वह किसी बुरे पौधे का हुआ तो जैसे ही पता चले उसे उखाड़ फेंकना चाहिए। और नन्हे राजकुमार के ग्रह पर कुछ बहुत ही खतरनाक किस्म के बीज पाए जाते थे.... जैसे बाओबाब के बीज। वहां की धरती उनसे आक्रांत थी। यदि बाओबाब के बारे में उसके बड़ा हो जाने के बाद, पता चले तो फिर उससे कोई छुटकारा नहीं। वह चारों तरफ फैल-पसर कर छा जाता है। उसकी जड़ें हर तरफ फैल जाती हैं। यदि ग्रह छोटा हुआ और बाओबाब बहुत से तो वह फट पड़ेगा।


"यह तो नियम-अनुशासन की बात है।" नन्हे राजकुमार ने बाद में मुझे बताया, "सुबह नित्यकर्म से निवृत होते ही पौधों की देखभाल करनी चाहिए। गुलाब और बाओबाब के पौधे करीब-करीब एक जैसे होते हैं इसलिए जैसे ही बाओबाब पहचाने जा सकें उन्हें उखाड़ फेंकना चाहिए। काम उलझन वाला सही पर होता आसान है।" 


एक दिन उसने मुझे राय दी कि मैं मेहनत करके एक सुंदर चित्र बनाऊं ताकि इस धरती के बच्चे उसे अच्छी तरह पहचान लें। उसने कहा, “अगर उन्होंने कभी यात्रा की तो इस चित्र से उन्हें सहायता मिलेगी। कभी-कभी, कुछ दिनों बाद अपना काम फिर शुरू करने में कोई कठिनाई नहीं होती लेकिन जहां तक बाओबाब का संबंध है उन्हें नष्ट करने का काम टालने में बस खतरे ही खतरे हैं। मैं एक ग्रह के बारे में जानता हूं जहां एक आलसी रहता था। इसमें तीन झाड़ों को वैसे ही छोड़ दिया था। और ..... और।"  



नन्हे राजकुमार के सुझावों पर मैंने उस ग्रह का एक चित्र बनाया। मैं उपदेश देना पसंद नहीं करता मगर बाओबाब से खतरों के बारे में लोगों को इतना कम मालूम है और किसी जगह जहां ऐसे पेड हों भटक जाने वाले के लिए खतरे इतने कि मैं एक बार संकोच का परित्याग कर कह सकता हूं। "बच्चों! बाओबाब से बचना।" मैंने इतनी मेहनत करके यह चित्र बनाया क्योंकि मेरी तरह मेरे दोस्त बहुत दिनों से एक खतरा, बिना उसे जाने, टालते रहे हैं और मैं उन्हें चेतावनी देना चाहता हूं। मैंने यह मेहनत बेकार नहीं की। कोई सोच सकता है इस पूरी पुस्तक में और कोई चित्र बाओबाब की तरह भड़कीला क्यों नहीं है। उत्तर बहुत साधारण है, मैंने हर बार कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली पर जब मैंने बाओबाब का चित्र बनाया तो बराबर सोच रहा था कि उसका बनना कितना जरूरी था। शायद इसीलिए यह चित्र अच्छा बन पड़ा। 




6


ओह! नन्हें राजकुमार! मैंने तेरा जीवन, उसकी उदासी धीरे-धीरे समझ ली थी। बहुत दिनों तक मेरे पास मन बहलाने का एक मात्र साधन था सूर्यास्त का सौंदर्य। इसका पता मुझे तुझसे मुलाकात के चौथे दिन चला जब तूने मुझसे कहाः 


"मुझे सूर्यास्त बहुत अच्छा लगता है। आओ चलें देखें!" 


"लेकिन उसके लिए तो अभी इंतजार करना होगा।" 


"इंतजार, इंतजार किस बात का?" "कि सूर्यास्त हो।" तुझे बड़ा आश्चर्य था। तू अपने में हंसता हुआ बोला था। "अरे! मैं सोच रहा था कि मैं अपने घर हूं।" । "वास्तव में जब अमेरिका में दोपहर हो तो फ्रांस में सूर्यास्त हो रहा होता है। अगर कोई अमरीका से तुरंत फ्रांस पहुंच जाए तो दोपहर के फौरन बाद शाम देख सकता है। दुर्भाग्यवश दोनों के बीच की दूरी काफी है। लेकिन तेरी छोटी सी धरती पर तुझे बस अपनी कुर्सी थोड़ी इधर-उधर खिसकाने की जरूरत होती होगी और तू जितनी बार चाहे सूरज का डूबना देख सकता होगा।" "एक दिन मैंने तैंतालिस बार सूर्यास्त देखा था।"


और तू फिर बोला, "जानते हो जब कोई उदास हो तो सूर्यास्त बड़ा अच्छा लगता है।" मैंने कहा, "तो जिस दिन तूने तैंतालिस बार सूर्यास्त देखा तू बड़ा उदास रहा होगा?" लेकिन उसने जवाब नहीं दिया।








7


पांचवे दिन, सदा की तरह भेड़ की कृपा से ही, नन्हे राजकुमार के एक और रहस्य का पता चला। जैसे वह किसी समस्या पर चुपचाप बहुत देर से विचार कर रहा हो, उसने बिना किसी भूमिका के झट से कहा, 


“अगर भेड़ झाड़ खाती है तो फूल भी खा सकती है?" 


"भेड़ जो भी मिल जाए खा डालती है।"


"कांटे वाले फूल भी?" 


"हां, कांटेदार फूल भी।" 


"तो फिर कांटे किस लिए होते हैं?" 


मुझे नहीं मालूम था यह। मेरे जहाज के इंजन में एक बोल्ट फंस गया था तो मैं उसे निकालने में व्यस्त था। मैं बड़ी चिंता में था क्योंकि मरम्मत कठिन लगने लगी थी। सबसे ज्यादा डर पानी समाप्त होने का था। 


"कांटे किस लिए होते हैं?" 


राजकुमार एक बार प्रश्न करने पर उसे भूलता नहीं था। मैं मरम्मत से खीजा हुआ था। जो भी मुंह में आए उत्तर दे देता था। 


"कांटे एकदम बेकार होते हैं। बस फूलों के प्रति दुष्टता के प्रतीक होते हैं।" 


"अच्छा !"


 वह थोड़ी देर तक चुप रहा फिर झुंझला कर उसने प्रश्नों की एक झड़ी लगा दी। 


“लेकिन मुझे तेरी बात पर विश्वास नहीं होता। फूल तो कोमल होते हैं, मासूम होते हैं। जैसे भी हो अपने को आश्वस्त कर लेते हैं। कांटों के होने से वे अपने आप को सरक्षित समझते होंगे।" 


मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मैं सोच रहा था अगर थोड़ी देर में ठीक नहीं हुआ तो मैं बोल्ट पर हथौड़ा चला दूंगा। उसने फिर मेरा ध्यान बंटा दिया, 


"और तुझे विश्वास है कि फूल ..... " 


"नहीं, नहीं, मैं कुछ नहीं जानता।" 


मैंने जो भी समझा जवाब दे दिया। 


"मैं जरूरी काम कर रहा हूं।" 


अकबक होकर उसने मुझे देखा, 


"जरूरी काम?" 


उसने देखा कि मेरी उंगलियां काली हो रही हैं और मैं एक भोंडी सी चीज पर हथौड़ा लिए झुका हुआ था। 


"तू तो बूढों जैसे बातें करता है।" 


मुझे थोड़ी शर्म आई पर उस पर बिना ध्यान दिए उसने कहा, “तू सब उल्टा-पुल्टा कर देता है... सब गड़बड़ कर देता है।" 


वास्तव में वह बहुत चिढ़ा हुआ था। उसके सुनहरे बाल हवा में उड़ रहे थे।




"मैं एक ऐसे ग्रह के बारे में जानता हूं जहां एक गुस्सैल से गुमसुम रहने वाले महाशय रहते हैं। उनका चेहरा हरदम लाल बना रहता है। उन्होंने कभी किसी से प्यार नहीं किया। कोई तारा नहीं देखा, कोई फूल नहीं सूंघा। कभी जोड़-घटाने, हिसाब-किताब के अलावा कुछ नहीं किया। वह भी सारे दिन तेरी तरह कहता रहता है, 'मैं व्यस्त हूं - मुझे बहुत काम है।' और दम्भ से वह फूला रहता है। लेकिन वह भी कोई आदमी हुआ। उसे कुकुरमुत्ता कहेंगे।"


"क्या?" 


"कुकुरमुत्ता!"

 

गुस्से से वह नीला-पीला होने लगा। 


"युग-युग से फूलों में कांटे होते चले आए हैं और फिर भेड़ फूलों को खा जाती रही है। यह समझने की कोशिश करना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि आखिर फूल एक ऐसी चीज को क्यों वहन करते हैं जिसका कोई इस्तेमाल न हो? फल और भेड की चली आ रही लडाई महत्वपूर्ण नहीं है क्या? क्या इसे समझना एक गोल-मटोल महाशय के । जोड़-घटाने से ज्यादा गंभीर बात नहीं? और यदि मैं कहूं कि मैं एक ऐसे फूल को जानता हूं जो सिर्फ मेरी दुनिया में होता है और उसे एक भेड़ एक दिन ऐसे ही बिना सोचे-समझे चर सकती है तो यह महत्वपूर्ण बात नहीं?" 


वह शर्म से लाल हो रहा था। बोला, "अगर कोई ऐसे फूल को प्यार करे जो कोटि-कोटि तारों में कहीं न पाया जाता हो - एकदम बेमिसाल हो, तो वह आसमान में फैले सितारों को निहारने मात्र से प्रसन्न हो जाएगा। लेकिन यदि उसे भेड़ चर जाए तो सारे तारे उसके लिए बुझ से जाएंगे। और यह कोई गम्भीर बात नहीं हुई?" 


इसके बाद वह कुछ नहीं कह सका। जोर की सुबकियां लेने लगा। 


रात हो चुकी थी। मैंने अपने औजार रख दिए। बोल्ट, हथौड़ा, प्यास, मौत - इनका कोई अर्थ नहीं रह गया था। एक ग्रह पर, मेरी धरती पर, एक नन्हा राजकुमार था..... उसे सांत्वना देनी थी। मैंने उसे बांहो में भर लिया था। उसे थपथपाया, झुलाया और बोला, 


“जिस फूल को तू प्यार करता है उसे कोई भय नहीं... मैं तेरी भेड़ का मुंह बंद करने के लिए एक 'जाबा' बना दूंगा, तेरे फूल के लिए कवच बना दूंगा।" 


मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं अनाड़ी लग रहा था। सोच नहीं पा रहा था कि उस तक कैसे पहुंचूं उसे छू सकूँ... ओह! बड़ा ही रहस्यमय है आंसुओं का संसार।








8


मैंने शीघ्र ही उस फूल के बारे में और अच्छी तरह जानना सीख लिया। नन्हे राजकुमार की दुनिया में पंखुड़ियों की एक ही लड़ी वाले सादे से फूल होते थे जो थोड़ी सी जगह में बिना किसी को असुविधा पहुंचाए उग आते थे। घास के बीच सुबह खिलते और शाम को मुरझा जाते थे। परंतु राजकुमार का प्रिय फूल ऐसे बीज से अंकुरित हुआ था जो न जाने कहां से उसकी धरती पर आ गया था। उसकी अंकुर अन्य अंकुरों से भिन्न था। राजकुमार ने उसकी बड़ी संलग्नता से देखभाल की थी। उसे डर था कि वह भी किसी दूसरी किस्म की बाओबाब की झाड़ी न हो लेकिन उस पौधे का बढ़ना जल्द ही बंद हो गया और लगा कि एक फूल खिलने वाला है। नन्हा राजकुमार, गदराई सी कली को देख कर सोचता कि इसमें से निश्चय ही एक चमत्कार प्रकट होगा। लेकिन अपने हरे कोष्ट की छांव में पंखुड़ियों के परिधान चुनती, सजती उस कली का सौंदर्य निखरता ही जा रहा था। वह अपने सौंदर्य को भरपूर जगमगाहट के पहले साधारण फूलों की तरह प्रकट नहीं होने देना चाहती थी। सच! बहुत शौकीन थी वह। साज-सज्जा कितने ही दिन चलती रही और फिर एक दिन उषा की पहली किरण के साथ वह अधखिली कली प्रकट हो ही गई। 


इतनी तैयारी के बाद उसने जम्हाई लेते हुए कहा, "ओह! मुश्किल सक अभी-अभी जागी हूं। क्षमा करना मैं अभी ठीक से तैयार नहीं।" नन्हें राजकुमार की प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। 


"कितनी सुदर हो!" 



"सच्ची!" अपनी मधुर आवाज में इतरा कर वह कली बोली, “मैं सूरज के साथ ही जन्मी हूं।" 


राजकुमार समझ गया कि वह विनम्र नहीं है पर उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। "यह नाश्ते का समय है।" उसने फौरन कहा, "मेरा ख्याल रखो।"


और राजकुमार शर्मा गया। उसने एक बर्तन ढूंढ कर उसे ताजे पानी से सींच दिया। 



कुछ ही दिनों में उस फूल ने राजकुमार को अपने मान भरे अहंकार से परेशान कर डाला। उदाहरण के लिए एक दिन अपने चारों कांटों की बात करते हुए उसने राजकुमार से कहा, "खूनी पंजों वाले बाघ भी आ जाएं तो मुझे डर नहीं।"



"मेरे ग्रह पर बाघ नहीं होते और फिर बाघ घास थोड़े ही खाते हैं।" राजकुमार ने विरोध किया।


"मैं घास नहीं हूं।" फूल ने धीरे से कहा। 


"क्षमा करना ....' 


"मुझे बाघ से परवाह नहीं पर हवा के झोकों से डर लगता है। तुम्हारे पास आड़ करने के लिए पर्दा तो नहीं होगा?" 


"हवा के झोकों से डर... एक पौधे के लिए कोई अच्छी बात नहीं।" यह फूल सीधा-साधा नहीं लगता, राजकुमार ने सोचा। 


"शाम को मुझे ढक देना। यहां बहुत सर्दी पड़ती है। मुझे चैन नहीं। जहां से मैं आई हूं..." 



उसे बीच में ही रुकना पड़ा। वह बीज रूप में कहीं और से आई थीं और दूसरी किसी दुनिया के बारे में उसे कुछ पता नहीं था। उसने एक मूर्खतापूर्ण झूठ बोलना चाहा था। स्वयं से अपमानित होती हुई मानो राजकुमार को गलत साबित करने के लिए एक-दो बार खांसती हुई बोली, “मैंने तुमसे पर्दा मांगा था न?" 


"जा रहा हूं ढूंढने... लेकिन तुम कुछ कह रही थीं!" 


वह जबरदस्ती खांसी थी ताकि राजकुमार को पछतावा हो। 



इस प्रकार बावजूद इसके कि वह मन लगाकर उसकी सेवा कर रहा था उसने फूल पर संदेह करना शुरू कर दिया। ऐसी ही कई बातों को बहुत महत्व दे देने के कारण वह दुखी था। 


एक दिन उसने धीरे से मुझसे कहा, "मुझे उसकी बात नहीं सुननी चाहिए थी। फूलों को बस देखना और सूंघना चाहिए। उनकी बातें नहीं सुननी चाहिए। मेरे फूल ने संसार को सुगंध से भर दिया था पर मुझे पता नहीं था कि मैं इस दुख को कैसे भोगूं। कांटों की बात, जिससे मैं चिढ़ गया था, वास्तव में उन बातों से मुझमें मृदुभाव पैदा होना चाहिए थे..."


फूल ने फिर चुपके से कहा, "मुझे बिल्कुल समझ नहीं थी। मुझे उसके बारे में, उसके शब्द नहीं, उसके काम के आधार पर निर्णय लेना चाहिए था। उसने मेरा सुख, मेरी समझ बढ़ाई थी। मुझे इस तरह पलायन नहीं करना चाहिए था। उसकी कटी-कटी बातों के पीछे से झांकती उसकी कोमलता, उसका प्यार देखना चाहिए था। कितना विरोधाभास होता है फूलों में। लेकिन मेरी उमर ही क्या थी कि प्यार करना जानूं।" 





9



मैं सोचता रहा कि वह अपने ग्रह से निकला कैसे होगा। मैंने सोचा कि प्रवासी चिड़ियों के झुंड के साथ उड़ चला होगा। जिस दिन वह रवाना होने वाला था उसने सब ठीक-ठाक किया। अपने दो जीवंत ज्वालामुखी चोटियों पर उसने झाडू लगाई। उनकी वजह से उसे सुबह नाश्ता गर्म करने में बड़ी सुविधा होती थी। एक सुप्त ज्वालामुखी भी था पर, पर कौन जाने ... । उसने उसे भी झाड़ कर ढंक दिया। ज्वालामुखी चिमनी की आग की तरह होते हैं। अगर उन्हें साफ करते रहा जाए तो बिना भड़के धीरे-धीरे सुगलते रहते हैं। पर इस धरती की बात और है। उनके सामने हम इतने छोटे होते हैं कि उन्हें साफ करना या ढंकना संभव नहीं। इसीलिए तो कभी-कभी इतना उत्पात करते रहते हैं ये। 


उसे थोड़ा दुख हुआ पर उसने बाओबाब के आखिरी झाड़ उखाड़े। वह सोचता था कि वह कभी लौटेगा नहीं पर ये रोजमर्रा काम करना उस दिन उसे बहुत अच्छा लगा। अपने फूल को ढंकने से पहले उसने आखिरी बार पानी दिया तो उसकी आंखें भर आई। "अलविदा!" उसने फूल से कहा। 


उसने जवाब नहीं दिया। 


"अलविदा!" उसने दोहराया। 


फूल ने खांसा। लेकिन वह सर्दी वाली खांसी नहीं थी। 


"मैं बहुत बुद्ध हूं। मुझे क्षमा करना। खुश रहने की कोशिश करना।" 


न डांट, न फटकार - उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। ढक्कन लिए गुमसुम खड़ा रहा। यह शांत मिठास उसकी समझ में नहीं आया। 


"मैंने तुझे बहुत प्यार किया," फूल ने कहा, "मेरी ही गलती थी कि तूने कुछ नहीं समझा। पर अब उसे क्या? लेकिन तुम भी मेरी तरह मूर्ख ... ! खुश रहना .... छोड़ो ढक्कन! अब क्या होगा इसका।"


"लेकिन हवा..!" 


"मुझे इतनी सर्दी नहीं लग रही है... रात की ताजा हवा में मेरी तबियत ठीक हो जाएगी। मैं फूल हूं न!" 


"लेकिन जानवर ....!" 


"अगर मुझे तितलियों को जानना है तो यह जरूरी है कि कुछ कीड़ों को भी जानूं! नहीं तो कौन आएगा मेरे पास। तू .... तो दूर रहेगा मुझसे। जहां तक बड़े जानवरों का सवाल है, मुझे कोई डर नहीं.... मेरे कांटे जो हैं।" 


एक अल्हड़ की तरह उसने अपने चार कांटे दिखाए और कहा, "ऐसे न खड़े रहो। मुझसे सहा नहीं जा रहा है जाने का निश्चय कर लिया है तो जाओ अब।" 









10


उसकी आंखों के आंसू कोई देखे यह उसके स्वाभिमान को गवारा नहीं था। आकाश से विचरता, उसने अपने को 325, 326, 327, 328, 329 और 330 नामक ग्रहों के करीब पाया। उसने कुछ करने, कुछ सीखने के लिए उन ग्रहों में जाने का निश्चय किया। 


पहले ग्रह में एक राजा रहता था। फर के गुलाबी और सफेद राजसी वस्त्रों से सुसज्जित वह एक शानदार सिंहासन पर बैठा था। 


"वाह! यह रही मेरी प्रजा।" नन्हे राजकुमार को देखते ही वह चिल्लाया। 


राजकुमार ने सोचा, “इसने मुझे पहले तो कभी देखा नहीं फिर कैसे पहचान लिया।" 


वह नहीं जानता था कि राजाओं के लिए दुनिया काफी सरल होती है। उनके लिए अपने अलावा सब लोग प्रजा होते हैं।




उस एकाकी राजा ने, जो अब किसी के लिए राजा था, गर्व से कहा, "नजदीक आ, ताकि तुझे देख सकूँ।" 


राजकुमार ने चारों ओर देखा कि कहां बैठे, पर उस छोटे ग्रह पर कहीं जगह नहीं थी। हर तरफ राजा के राजसी वस्त्र फैले हुए थे। वह खड़ा ही रहा और चूंकि थक गया था इसलिए उसे जम्हाई आ गई। 


"राजा के सामने जम्हाई लेना सभ्यता के विरुद्ध है। ऐसा मत करना अब।" राजा बोला। 


राजकुमार की समझ में नहीं आया। वह बोला, "कैसे रोकू! बहुत दूर की यात्रा करके आया हूं और मैं बिल्कुल सो नहीं सका हूं।" 


"अच्छा तुझे जम्हाई लेने की आज्ञा है। सालों गुजर गए किसी को जम्हाई लेते देखे। मेरे लिए यह देखना अजीब सी बात है। अच्छा! तो ले जम्हाई! मैं आज्ञा देता हूं।" 


राजकुमार लाल हो गया। बोला, "अब तो डर लगता है .... अब नहीं आती जम्हाई।" 


"हूं! हूं अच्छा तो मैं.... तुझे आज्ञा देता हूं कि अभी जम्हाई ले अभी..... " 


उसे शब्द नहीं मिले। वह परेशान दिखाई पड़ा। 


राजा होने के नाते वह सोचता था कि उसकी सत्ता का सम्मान हो। उसक अपनी आज्ञा का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं था। वह एक छत्र राजा था, लेकिन चूंकि एक नेक आदमी था वह तर्क-संगत आज्ञा ही देता था।


वह कहता, “अगर मैं एक सेनापति से कहूं कि वह मेरा बगुला बन जाए और वह मेरी आज्ञा माने तो इसमें मेरा दोष है, उसका नहीं।" 


धीरे से राजकुमार ने पूछा, "मैं बैठ जाऊं?" 


अपने वस्त्रों को सिकोड़ कर राजा बोला, “मैं तुझे बैठने की आज्ञा देता हूं।" 


राजकुमार अचम्भे में था। इतने नन्हे से ग्रह पर वह राजा आखिर राज्य किस पर करता होगा।


"महाराज! क्षमा कीजिएगा। आप से एक प्रश्न पूछू?" 


"मैं तुझे प्रश्न पूछने की आज्ञा देता हूं।" 


"आप किस पर राज्य करते हैं?" 


"सब पर!" 


राजा ने चारों तरफ हाथ घुमा कर ग्रहों और सितारों की ओर इशारा कर दिया। 


"इन सब पर?" 


"इन सब पर।" 


वह एक छत्र ही नहीं, सार्वभौम राजा था। 


"सितारे आपकी आज्ञा मानते हैं?" 


"हां! हां!" राजा बोला। 


"वे तुरंत मेरी आज्ञा का पालन करते हैं। मुझे अनुशासनहीनता पसंद नहीं है।" 


नन्हा राजकुमार ऐसी सत्ता के सामने हतप्रभ था। अगर वह स्वयं इतना शक्तिशाली होता तो उसने केवल चौंतालिस बार नहीं बल्कि बहत्तर, सौ या दो-सौ बार सूर्यास्त देखा होता एक ही दिन में - बिना अपनी कुर्सी एक बार भी खिसकाए। और चूंकि अपना घर छोड़ने की वजह से वह उदास था उसने हिम्मत करके राजा से उस पर कृपा करने की मांग की, "मैं सूर्यास्त देखना चाहता हूं.... मेरी खुशी के लिए.... सूरज को आज्ञा दीजिए कि अस्त हो जाए.... " 


"अगर मैं सेनापति को आज्ञा दूं कि वह तितली की तरह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ता फिरे, कि वह एक नाटक लिखे या कि वह एक बगुला बन जाए - और यदि वह मेरी आज्ञा का पालन न करे तो गलती उसकी होगी या मेरी?" 


"आपकी," दृढ़तापूर्वक उसने जवाब दिया। 


"बिल्कुल ठीक!", राजा ने कहा, "हर किसी से उसी बात की अपेक्षा रखनी चाहिए जिसके वह लायक हो। सत्ता का आधार न्याय संगत होना चाहिए। यदि कोई राजा अपनी प्रजा से डूब मरने के लिए कहे तो वह क्रांति कर देगी। मुझे अपनी आज्ञा का पालन कराने का अधिकार है क्योंकि मेरी आज्ञा न्याय संगत होती है।" 


"और मेरे सूर्यास्त का क्या हुआ?" राजकुमार ने याद दिलाया। वह एक प्रश्न करने के बाद उसे कभी नहीं भूलता था।


"तेरा सूर्यास्त, मिलेगा तुझे। मैं चाहूंगा कि सूर्यास्त हो लेकिन .... लेकिन पहले देखना पड़ेगा कि परिस्थितियां अनुकूल हैं या नहीं। यही प्रशासन का तरीका है।" 


"ऐसा कब होगा?" राजकुमार ने जानना चाहा। 


"हूं!" एक बड़ा सा कैलेन्डर देखता हुआ राजा बोला। "हूं!.... सूर्यास्त करीब ... करीब सात बज कर चालीस मिनट पर होगा। और तब देखना कैसे मेरी आज्ञा का पालन होता है।" 


राजकुमार को जम्हाई आ गई। उसे अफसोस हो रहा था कि वह सूर्यास्त नहीं देख पाएगा। उसे उलझन होने लगी थी। 


"मुझे यहां कुछ नहीं लेना-देना। मैं चला।" उसने राजा से कहा। 


"नहीं, नहीं। जा मत। मैं तुझे मंत्री बना दूंगा।" राजा बोला, "उसे गर्व था कि उसकी कोई प्रजा तो है।" 


"किस चीज का मंत्री।" "... न्याय मंत्री।" 


"लेकिन किसे दूंगा मैं न्याय? यहां कौन है?"



"कौन जाने। मैं बूढ़ा हो गया हूं। चलने-फिरने से थक जाता हूं। मैंने अपना राज्य घूम कर देखा भी तो नहीं है।" 


"अच्छा? लेकिन मैंने देखा है।" उस छोटे से ग्रह के दूसरी ओर से झांकता हुआ राजकुमार बोला, "वहां भी तो कोई नहीं है।" 


"अच्छा स्वयं अपने को न्याय देना। वही सबसे मुश्किल है। अपने प्रति न्याय करना दूसरे को न्याय देने से अधिक कठिन होता है। तू अपने साथ न्याय कर सका तो तू सही अर्थों में एक बुद्धिमान और पहुंचा हुआ व्यक्ति कहलाएगा।" 


"अगर मुझे अपने ही साथ न्याय करना है तो मैं कहीं भी रह सकता हूं। मुझे यहां रहने की क्या जरूरत है?" 


"हूं! मुझे विश्वास है कि इस ग्रह पर कहीं एक चूहा भी है। रात को मैं उसकी आवाज सुनता हूं। तू इस बूढ़े चूहे को न्याय देना। कभी-कभी उसे मृत्यु दंड दे दिया करना। इस प्रकार उसका जीवन तेरे न्याय पर आश्रित हो जाएगा। लेकिन उसे माफ भी करते रहना पड़ेगा क्योंकि एक वही तो है। वह भी मर गया तो क्या होगा!" 


"मैं... मुझे मृत्यु दंड देना पसंद नहीं। और फिर .... मैं... मैं तो जा रहा हूं।" 


"नहीं... नहीं।" 


लेकिन राजकुमार ने, जो जाने के लिए तत्पर था, राजा को और दुखी करना नहीं चाहा। उसने कहा, “अगर महामहिम को तुरंत अपनी आज्ञा के पालन का सुख लेना हो तो मुझे एक तर्क संगत आज्ञा दें। जैसे आप मुझे आज्ञा दे सकते हैं कि मैं एक मिनट के अंदर यहां से चला जाऊं और मुझे लगता है कि इस आज्ञा के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।" 


राजा ने जवाब नहीं दिया था इसलिए थोड़ा संकोच हुआ फिर एक लंबी सांस लेकर वह रवाना हो गया। 


"मैं तुझे अपना राजदूत बनाता हूं।" जल्दी से चिल्लाया राजा। उसके चेहरे पर अधिकारपूर्ण भंगिमा का तनाव दिखाई पड़ रहा था। चलते-चलते नन्हे राजकुमार ने सोचा, ये बड़े-बूढ़े लोग अजीब होते हैं।




11


दूसरे ग्रह पर एक दम्भी रहता था। 


"अहा! हा! आ ही गया मेरा प्रशंसक।" दूर से राजकुमार को आते देख कर उसने कहा।


ऐसे दम्भी लोगों के लिए सारे लोग प्रशंसक होते हैं। 



"नमस्कार! आपका टोप बड़ा दिलचस्प है।" राजकुमार ने कहा। 


"है न? उसने कहा। यह अभिवादन के लिए है। यह इसलिए है कि जब लोग जय-जयकार करें, प्रशंसा करें तो इसे सिर से उठा कर मैं अभिवादन का जवाब दूं। पर दुर्भाग्यवश यहां कोई आता ही नहीं।" 


"अच्छा?" राजकुमार बोला। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। 


"ताली बजाओ।" उस दम्भी ने आदेश दिया। राजकुमार ने ताली बजाई और उस व्यक्ति ने अपना टोप नम्र अभिवादन में उठा लिया। 


पांच मिनट में ही इस खेल की एकरसता से राजकुमार ऊब गया। 


"और टोप को नीचे लाने के लिए क्या करना चाहिए?" राजकुमार ने पूछा। 


दम्भी ने सुना नहीं। ऐसे लोगों को अपनी प्रशंसा के अलावा कुछ नहीं सुनाई पड़ता। 


"क्या तुम सचमुच मेरी प्रशंसा करते हो?" उसने राजकुमार से पूछा। 


"प्रशंसा? क्या अर्थ होते हैं इसके?" 


"प्रशंसा करने का अर्थ हुआ कि तुम मुझे इस ग्रह का सबसे सुंदर, सबसे सुसज्जित धनी और सबसे बुद्धिमान व्यक्ति समझते हो।" 


"लेकिन तुम तो इस ग्रह के एकमात्र व्यक्ति हो!" 


"क्या हुआ? तब भी मेरी प्रशंसा करना!" अपने कंधे हिलाते हुए राजकुमार ने कहा, "मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूं। लेकिन आखिर अपनी प्रशंसा क्यों करवाना चाहते हो?" 


और राजकुमार वहां से चला गया। 


अपने यात्रा के दौरान उसने सोचा ये बड़े लोग बहुत अजीब होते हैं।





12


अगले ग्रह में एक शराबी रहता था। वहां वह थोड़ी ही देर रहा पर उसका मन विषाद से भर गया।


उसने देखा कि वह व्यक्ति कुछ खाली, कुछ भरी बोतलें लिए चुपचाप बैठा है। उसने पूछा, "क्या कर रहे हैं आप?" 



एक उदास आवाज में उसने जवाब दिया, “पी रहा हूं।" 


"क्यों पी रहे हैं?" 


"भूलने के लिए।" 


"क्या भूलने के लिए?" 


राजकुमार ने पूछा। वह उसकी हालत पर दुखी था। 


"यह भूलने के लिए कि मैं शर्मिन्दा हूं।" उसने स्वीकार किया। उसका सिर एक तरफ झूल रहा था। 


"किस बात की शर्म?" राजकुमार ने जोर देकर पूछा। 


"मुझे अपने पीने पर शर्म है।" उस पिअक्कड़ ने अपनी बात खत्म करके एकदम से चुप्पी साध ली।


राजकुमार के कुछ समझ में नहीं आया। वह चल पड़ा, उसने सोचा ये बड़े लोग सचमुच बड़े अजीब होते हैं। 






13


चौथे ग्रह का स्वामी एक व्यवसायी था। वह व्यक्ति इतना व्यस्त था कि उसने राजकुमार के आने की आहट पर अपना सिर तक नहीं उठाया। 


"नमस्ते। आपकी सिगरेट बुझ चुकी है।" राजकुमार बोला। 


"तीन दो पांच। पांच और सात ग्यारह। नमस्कार। पंद्रह और सात बाईस। बाईस और छः अट्ठाईस। उसे जलाने तक का वक्त नहीं है। छब्बीस ओर पांच इकतीस! हूं... तो कुछ मिलाकर पचास करोड़, सोलह लाख, बाईस हजार, सात सौ इकतीस हुआ।" 


“पचास करोड़ क्या?" 


"अच्छा, तू मौजूद है अभी!"





“पचास करोड़ ... पचास करोड़ पता नहीं क्या .... याद ही नहीं रहा। इतना काम है। बड़ा गम्भीर आदमी हूं मैं। मैं बेकार की बातों में नहीं पड़ता। दो पांच सात ....."


"इक्यावन करोड़ क्या?" राजकुमार ने दोहराया। एक बार सवाल पूछने पर जीवन में उसने कभी किसी को उत्तर पाए बिना छोड़ा नहीं था। 


व्यवसायी ने सिर उठाया, “मैं चौव्वन साल से इस ग्रह पर हूं और इस बीच मेरे काम में केवल तीन बार बाधा पड़ी है। पहली बार, बाईस साल हुए, एक भौरा न जाने कहां से गिर पड़ा था। इतने जोरों की आवाज हुई कि मुझसे हिसाब में चार गलतियां हुईं। दूसरी बार, ग्यारह साल हुए मुझे गठिया हो गई थी। मैं व्यायाम तो कर नहीं पाता। मेरे पास खराब करने के लिए वक्त तो है नहीं। गम्भीर व्यक्ति जो ठहरा। तीसरा बार... यह रहे तुम हां, तो मैं कहां था इक्यावन करोड़ ... "


"इक्यावन करोड़ क्या?" 


व्यवसायी समझ गया कि उसे शांति नहीं मिलने वाली है। 


"वे छोटी-छोटी चीजें जो कभी-कभी आसमान में दिखाई पड़ती हैं।" 


"मक्खियां?" 


"नहीं भाई। वे जो चमकती हैं।" 


"जुगनू?" 


"नहीं! नहीं! सुनहरी चीजें जिन्हें देखकर असली लोग हवाई किले बनाने लगते हैं। लेकिन मैं ऐसा-वैसा आदमी नहीं, मुझे वक्त खराब करने की फुरसत नहीं।" 


"अच्छा! सितारे?" 


"हां! हां! सितारे!" 


"इन पचास करोड सितारों से तेरा क्या मतलब?" 


“पचास करोड़ नहीं - पचास करोड़ सोलह लाख बाईस हजार सात सौ इक्तीस। मैं इधर-उधर की बात नहीं करता। मैं गलती नहीं करता।" 


"क्या करता है तू इन सितारों का?" 


"उनका मैं क्या करता हूं?" 


"हां"


"कुछ नहीं - बस उनका मालिक हूं।" 


"तू सितारों का मालिक हूं।" 


"हां" 


"लेकिन.... मैं एक राजा को जानता हूं जो... वो राजा कहता था कि सब सितारों पर उसी का राज्य है।" 


"राजाओं का कुछ नहीं होता। बस वे शासन करते हैं। रखना और शासन करना अलग चीजें हैं।" 


"इन सितारों का मालिक होने से तुझे क्या मिलता है?" 


"मैं इनकी वजह से धनी हूं!" 


"और धनी होने से फायदा?" 


"अगर और किन्हीं सितारों का पता चले तो मैं उन्हें खरीद सकता हूं।" 


राजकुमार ने सोचा कि वह तो बिल्कुल उस शराबी जैसे तर्क दे रहा है। 


"अरे भाई सितारों को कोई कैसे रख सकता है - कैसे उनका मालिक बन सकता है?" 


"तो किसके हैं यह सितारे?" व्यवसायी ने खीज कर पूछा। 


"मुझे नहीं मालूम - शायद किसी के नहीं।" 


"अगर किसी के नहीं हैं तो मेरे हैं क्योंकि सबसे पहले मैंने ही ऐसा सोचा है।" 


"सोचना काफी होता है?"


"और क्या। अगर तुझे एक हीरा मिल जाए जो किसी का न हो तो वह तेरा ही तो होगा। अगर तुझे एक लावारिस टापू मिले तो तेरा ही होगा! अगर तुम्हारे दिमाग में कोई विचार पैदा हो और तू उसे पेटेन्ट करा ले तो वह तेरा ही होगा। इसी तरह सितारे मेरे हैं क्योंकि मुझसे पहले किसी ने उन्हें अपनाने के बारे में नहीं सोचा।" 


"यह तो ठीक है पर तू करेगा क्या इनका?" 


"मैं उनकी देखभाल करता हूं। मैं उन्हें बार-बार गिनता हूं। काम मुश्किल है पर मैं गम्भीर और व्यस्त आदमी हूं न!" 


राजकुमार को संतोष नहीं हुआ। 


"अगर मेरे पास एक मफलर हो तो मैं उसे गले के चारों ओर लपेट सकता हूं। मैं उसे जहां चाहूं ले जा सकता हूं। यदि मेरे पास एक फूल हो तो मैं उसे तोड़ सकता हूं - जो चाहे कर सकता हूं, लेकिन तू सितारों को तोड़ नहीं सकता!" 


"यह ठीक है पर मैं उन्हें बैंक में डाल सकता हूं।" 


"क्या माने हुए इसके?" 


"इसका मतलब हुआ कि इन सितारों की संख्या एक कागज पर लिखकर मैं उसे दराज में बंद कर सकता हूं।" 


"इतना काफा है? बस?" 


राजकुमार को यह बात मजेदार लगी। बात काव्यात्मक थी पर गम्भीर नहीं। 


गम्भीर बातों के विषय में उसके विचार वयस्कों से बहुत भिन्न थे। 


"मैं.... ," उसने कहा, "मेरे पास एक फूल है जिसे मैं रोज सींचता हूं। मेरे पास तीन ज्वालामुखी हैं जिनकी मैं हर हफ्ते सफाई करता हूं - उसकी भी जो सुप्त है - कौन जाने । ये फूल और ज्वालामुखी मेरे हैं .... इससे उन्हें लाभ होता है - मैं उनके लिए उपयोगी हूं लेकिन तू .... तू सितारों के किसी काम नहीं आता है?" 


व्यवसायी का मुंह खुला पर उत्तर में उसके पास कोई शब्द नहीं था। राजकुमार वहां से भी चल पड़ा। 


उसने सोचा सचमुच ये वयस्क लोग अजीब होते हैं। 






14


पांचवा ग्रह अद्भुत था। वह सबसे छोटा था - इतना छोटा कि बस इतनी जगह थी कि एक लैम्पपोस्ट और एक बत्ती वाला खड़ा हो सके। राजकुमार के समझ में नहीं आया कि आकाश में एक छोटे और वीरान ग्रह पर जहां कोई न रहता हो एक लालटेन और उसके जलाने वाले की क्या जरूरत। फिर भी उसने सोचा, शायद यह आदमी बिल्कुल बकवास हो। पर यह उस राजा, घमंडी, शराबी और व्यवसायी जैसा मूढ़ नहीं है। कम-से-कम उसके काम का कोई अर्थ तो है। जब वह अपनी बत्ती जलाता है तो जैसे एक तारा, एक फूल जगमगाने लगता है और जब वह उसे बुझाता है तो मानों वह तारा या फूल सो जाता है। यह तो एक सुंदर काम है और चूंकि सुंदर है इसलिए उपयोगी भी।


जैसे ही उसने उस ग्रह पर पांव रखा, उसने उसे जलानेवाले को सम्मानपूर्वक नमस्कार किया, "शुभ प्रातः! क्यों बुझा दी अपनी बत्ती?" 


"यह नियम है," कहते हुए उसने जवाब दिया। 


"क्या नियम है?" 


"यही कि मैं इसे बुझाऊं। अरे शाम हो गई।" उसने बत्ती जला दी। 


"अरे! बत्ती क्यों जला दी?" 


"यह मेरा काम है।" 


"मैं समझा नहीं," राजकुमार ने कहा। 


"इसमें समझने की कोई बात नहीं। काम का मतलब काम। शुभ प्रातः" और उसने फिर बत्ती बुझा दी। 


फिर उसने एक सफेद और लाल रंग के रूमाल से अपनी ललाट पोंछ ली। 


"बड़ा ही मुश्किल है यह। पहले ठीक था। मैं सुबह की बत्ती बुझा देता था और शाम को जला देता था। पूरा दिन




आराम और पूरी रात सोने के लिए मिल जाती थी...." 


"और फिर क्या नियम बदल गया?" 


"नियम नहीं बदला। प्रकृति की लीला बदल गई। यह ग्रह हर साल पहले से तेज चक्कर लगाने लगा है और नियम वही का वही है।" 


"तो?" 


"तो अब तो यह हर मिनट में एक चक्कर लगा लेता है। मुझे एक सेकंड का भी आराम नहीं मिलता। हर मिनट एक बार जलाना, एक बार बुझाना।" 


"अजीब बात है। यहां एक मिनट का दिन होता है!" 


"कुछ अजीब नहीं। हम लोगों को बातें करते एक महीना हो गया।" 


"एक महीना?" 


"हां! तीस मिनट, तीस दिन। शुभ रात्रि।" और उसने फिर बत्ती जला दी। 


राजकुमार को अपने कर्तव्य के प्रति इतना ईमानदार बत्ती वाला बड़ा भला लगा। उसे उन सूर्यास्तों की याद आई जिन्हें वह कुर्सी खिसका-खिसका कर देखता रहता था। उसने अपने इस दोस्त की मदद करनी चाही, "जानते हो मुझे एक तरीका मालूम है कि तू जब चाहे आराम कर सकेगा।"


"आराम, आराम तो मुझे हमेशा चाहिए।" 


कर्तव्य परायण और आलसी एक ही साथ हुआ जा सकता है। 


नन्हे राजकुमार ने कहा, "तेरा ग्रह इतना छोटा है कि तू तीन कदम चल के उसकी परिक्रमा कर सकता है। तुझे बस इतना धीरे चलना है कि हरदम धूप में रह सके और शाम हो ही नहीं! जब तुझे आराम करना हो तो चलने लगना.... और फिर दिन उतना लंबा हो जाएगा जितना तू चाहेगा।"


"लेकिन इससे मेरा क्या भला होगा? मुझे तो सोना अच्छा लगता है और चलते-चलते मैं सो तो पाऊंगा नहीं।" 


"यह तो दुर्भाग्य ही हुआ।" राजकुमार बोला। 


"दुर्भाग्य ही है। शुभ प्रातः!"


और उसने बत्ती बुझा दी। अपनी यात्रा में और आगे बढ़ता हुआ राजकुमार सोचने लगा कि अब तक जिनसे वह मिल चुका है - राजा, दम्भी, शराबी, व्यवसायी, वे सभी इसको बुरा-भला कहेंगे पर यह अकेला ऐसा व्यक्ति था जो हास्यास्पद नहीं लगा। शायद इसलिए कि वह अपने में नहीं बल्कि दूसरे कामों में व्यस्त है।


उसने ठंडी सांस ली और सोचने लगा बस यही एक था जिससे दोस्ती हो सकती थी। लेकिन उसके ग्रह पर जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति रह सकते। 


यद्यपि राजकुमार ने कहा नहीं। उसे उस ग्रह के छोड़ने में जो तकलीफ हो रही थी उसका सबसे बड़ा कारण वह था कि उस ग्रह पर हर चौबीस घंटे में एक हजार चार सौ चालीस बार सूर्यास्त होता था। 






15


छठा ग्रह दस गुना बड़ा था। उस पर एक बूढ़े महाशय रहते थे जो एक बड़ी सी किताब लिख रहे थे। 


"अरे!" राजकुमार को देखते ही वह चिल्लाया, “यह रहा एक अन्वेषक।"


राजकुमार मेज के पास दम लेने के लिए बैठ गया। बहुत यात्रा कर चुका था वह। 


"कहां से आ रहा है?" 


"कौन सी किताब है यह," राजकुमार ने पूछा, "क्या कर रहे हैं आप?" 


"मैं तो भूगोलवेत्ता हूं।" 


"भूगोलवेत्ता का अर्थ?" 


"वह एक विद्वान होता है जिसे पता होता है कि कहां सागर, कहां नदियां - नगर, पहाड़ और रेगिस्तान पाए जाते है।"


“यह तो मजेदार बात हुई, यह तो एक अच्छा व्यवसाय हुआ।"


राजकुमार ने इस भूगोलवेत्ता के ग्रह पर नजर दौड़ाई। उसने अभी तक इतना शानदार ग्रह नहीं देखा था। 


"तुम्हारा ग्रह तो बहुत सुंदर है। यहां समुद्र है क्या?" 


"हो सकता है।" 


"वाह! राजकुमार थोड़ा हताश हुआ, और पहाड़ है यहां?" 


"मुझे कैसे मालूम होगा।" 


"नगर, नदियां और रेगिस्तान हैं यहां?" 


"इनके बारे में भी मुझे नहीं मालूम।" 


"लेकिन आप तो भूगोलवेत्ता हैं!"


"हूं तो लेकिन खोज तो करता नहीं। वह प्रकृति मुझ में बिल्कुल नहीं है। भूगोलवेत्ता तो जाएगा नहीं नगरों, नदियों, पहाड़ों, सागरों, महासागरों और रेगिस्तानों की गिनती करने। इधर-उधर घूमना उसका काम नहीं। यह तो काफी महत्वपूर्ण होता है। वह अपनी कुर्सी नहीं छोड़ सकता। यहीं उसे खोज करने वाले मिल जाते हैं। वह उनसे प्रश्न करता है और खोजकर्ताओं के अनुभवों को नोट करता है। और अगर किसी खोजकर्ता का बयान दिलचस्प लगे तो वह पता लगाता है कि वह कैसा आदमी है।"


"वह किस लिए?" 


"क्योंकि ऐसा एक व्यक्ति जो झूठ बोलता हो भूगोल की किताबों की मिट्टी पलीद कर देगा। वह भी जो शराबी हो।"


"लेकिन क्यों," 


"क्योंकि शराबी को चीजें दोहरी दिखाई पड़ती हैं और भूगोलवेत्ता उसके बयान के अनुसार यहां एक पहाड़ है वहां दो पहाड़ लिख देगा।" 


"मैं एक व्यक्ति को जानता हूं," राजकुमार बोला, "जो अच्छी खोज नहीं कर सकता।" 


"हो सकता है यदि खोज करने वाले का चरित्र अच्छा है तो उसके आविष्कार के बारे में छानबीन की जाती है।" 


"वहां जाकर देखा जाता है?"  


"नहीं भाई, जाना तो मुश्किल होता है। हां उससे कहा जाता है कि वह अपनी खोज के बारे में सबूत दे। उदाहरण के लिए यदि आविष्कार किसी बड़े पहाड़ से संबंधित है तो उससे कहा जाता है कि वह वहां से बड़ी-बड़ी चट्टानें लाए।" 


अचानक वह भूगोलवेत्ता भावावेश में आ गया। "तू .... तू भी तो अन्वेषक है। तू तो दूर से आ रहा है। मुझे अपने ग्रह के बारे में बता।"


और उस विद्वान ने अपना रजिस्टर खोला, पेन्सिल बनाई। खोज के विषय में पहले पेन्सिल से लिखा जाता है फिर जब बात साबित हो जाती है तब रोशनाई से। 


"हां तो?" उसने राजकुमार से पूछा। 


"अच्छा! अच्छा! मेरे ग्रह पर कोई खास बात नहीं है। छोटा सा है। वहां तीन ज्वालामुखी हैं दो प्रज्जवलित हैं और एक सुप्त। लेकिन कौन जाने ..." 


"कौन जाने," भूगोलवेत्ता ने दोहराया। 


"मेरे वहां एक फूल भी है।" 


"फूलों-वूलों के बारे में हम लोग नोट नहीं लेते।" 


"क्यों?" 


"फूल तो सबसे क्षणभंगुर होते हैं।" 


"क्षणभंगुर के क्या माने?"




"भूगोल की किताबें अन्य सब किताबों से मूल्यवान होती हैं," वह भूगोलवेत्ता बोला, "वे कभी पुरानी नहीं पड़तीं। पहाड़ मुश्किल से कभी अपनी जगह बदलते हैं, सागर कभी नहीं सूखते। हम ऐसी ही स्थाई चीजों के बारे में लिखते हैं।" 


"लेकिन सुप्त ज्वालामुखी फिर भड़क सकते हैं," राजकुमार ने टोका। “पर क्षणभंगुर का अर्थ?"


"ज्वालामुखी शांत हो या जीवंत हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे लिए तो यही महत्वपूर्ण है कि वे पहाड़ हैं, और पहाड़, पहाड़ ही होते हैं।" 


"लेकिन क्षणभंगुर का मतलब?" राजकुमार अपने प्रश्न नहीं भूलता था।



"उसका मतलब है जो जल्दी ही समाप्त होने वाला हो।" 


"मेरा फूल समाप्त हो जाएगा?" 


"और क्या।" राजकुमार ने सोचा मेरा फूल क्षणभंगुर है और सारी दुनिया से जूझने के लिए बस चार कांटें हैं उसके पास। फिर भी उसे मैंने अकेला छोड़ दिया। 


पहली बार उसे दुख हुआ। पर फौरन साहस कर उसने पूछा, “आप मुझे कहां की यात्रा करने की राय देंगे?" 


"तुम पृथ्वी पर जाओ। बड़ा नाम है उसका।" 


अपने फूल के बारे में सोचता हुआ नन्हा राजकुमार पृथ्वी की ओर चल पड़ा।







16

यात्रा के सातवें दौरे में वह पृथ्वी पर पहुंचा। धरती कोई ऐसा-वैसा ग्रह तो है नहीं। यहां 111 राजा (अफ्रीकी राजाओं को लेकर) सात हजार भूगोलवेत्ता, नौ लाख व्यवसायी, पचहत्तर लाख शराबी, इकत्तीस करोड़ दम्भी - कुल मिलाकर दो करोड़ वयस्क लोग रहते हैं इस धरती पर। 


धरती कितनी बड़ी है इसका अंदाजा शायद इस बात से चल जाएगा कि बिजली के आविष्कार से पहले कुल मिलाकर छः महाद्वीपों पर रोशनी के लिए चार लाख बासठ हजार पांच सौ ग्यारह बत्तियां जलाने वालों की पूरी फौज की जरूरत पड़ती थी। 


आसमान से देखने पर बड़ा मनोहारी लगता था यह दृश्य। यह फौज जब काम पर निकलती थी तो लगता था जैसे बैले नृत्य हो रहा हो। पहले न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया की बत्तियां जलती थीं। जलाने के बाद वहां के बत्ती वाले सोने चले जाते थे। फिर आते चीन और साईबेरिया के बत्ती वाले, नृत्य के दूसरे क्रम में और थोड़ी देर के बाद नेपथ्य में चले जाते। फिर आते थे रूस और भारत के बत्ती वाले, फिर अफ्रीका और यूरोप के, फिर दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका वाले। कोई यह नहीं भूलता था कि उन्हें कब मंच पर आना है और धरती के जगमगाते मंच पर मशाल नृत्य चलता रहता था। अद्भुत होता था वह दृश्य। 


केवल उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के एकाकी बत्ती वाले अपने एक मात्र लैम्पपोस्ट को जलाने-बुझाने में साल में दो बार काम करते थे। उनके जीवन में न श्रम था, न चिंता थी।






17

तेज व्यंग्यात्मक बात करने वाला आदमी कभी बिल्कुल सच नहीं बोलता। बत्ती वालों की बात करते समय मैंने थोड़ी अतिश्योक्ति कर दी। जिन्हें धरती के बारे में नहीं मालूम उन्हें मेरी बात से सही तस्वीर नहीं मिल पाएगी। इस विशाल धरती के बहुत छोट से हिस्से पर आदमी रहता है। यदि कुल दो अरब मनुष्य एक-दूसरे के पास खड़े हो जाएं, जैसे लोग किसी सभा में खड़े होते हैं, तो बीस मील लंबी और बीस मील चौड़ी जगह से ज्यादा जगह नहीं घेरेंगे। सारी मानवता को प्रशांत महासागर के एक ही छोटे से द्वीप में लूंसा जा सकता है। 


बड़े लोग इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे। उनके ख्याल से वे बहुत बड़े भू-भाग पर काबिज हैं। वे अपने को बाओबाब की तरह ही महत्वपूर्ण समझते हैं। उनसे संस्थाओं की बात करनी चाहिए। यह उन्हें अच्छा लगता है। लेकिन इस काम में बहुत वक्त न लगाना। मुझ पर तुम्हें विश्वास है यह मैं जानता हूं। 




धरती पर आकर जब उसने एक दम सुनसान पाया तो नन्हे राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे डर लग रहा था कि वह पृथ्वी के अलावा किसी और ग्रह पर तो नहीं पहुंच गया। तभी उसने एक गोल सी सुनहरी चीज को रेत में हिलते देखा। 


"शुभ रात्रि," राजकुमार ने कहा। 


"शुभ रात्रि," सांप ने उत्तर दिया। 


"मैं किस ग्रह पर हूं?" 


"पृथ्वी पर, अफ्रीका में।" 


"ठीक, तो क्या फिर पृथ्वी पर कोई नहीं रहता?" 


"रहते क्यों नहीं। यह रेगिस्तान है। रेगिस्तान में कोई नहीं रहता। पर पृथ्वी बहुत बड़ी है," सांप ने कहा।


राजकुमार एक चट्टान पर बैठ गया और आकाश को निहारने लगा। 


"पता नहीं सितारों पर रोशनी होती है या नहीं, जिससे हर कोई अपना तारा पहचान सके। यह देखो! मेरा ग्रह ठीक हमारे ऊपर है। पर वो है कितनी दूर!" राजकुमार ने इशारा किया। 


"सुंदर है, पर तू यहां क्या करने आया है?" 


"मेरी एक फूल से पटी नहीं इसलिए.... " 


"हूं।" 


फिर दोनों चुप हो गए। 


"आखिर आदमी लोग कहां है? यहां तो बड़ा एकाकीपन है," राजकुमार ने चुप्पी तोड़ी। 


"आदमियों के बीच भी एकाकीपन होता है।" सांप बोला। 


राजकुमार सांप को देखता रहा, "बड़ा मजेदार जानवर है तू, बिल्कुल उंगली जैसा पतला," राजकुमार ने कहा। 



"लेकिन मुझमें एक राजा की उंगली से भी ज्यादा शक्ति है," सांप बोला।


राजकुमार मुस्कराया, "इतना ताकतवर तो नहीं है तू... तेरे पांव तक तो हैं नहीं - चल-फिर सकता नहीं।" 


"मैं तुझे वहां ले जा सकता हूं जहां जहाज तक नहीं ले जा सकते।" 


उसने राजकुमार की एड़ी के चारों ओर लिपट कर एक सोने की ब्रेसलेट जैसे कुंडली बनाई। 


"जिसे छू दूं वह उसी धूल में मिल जाता है, जिससे पैदा हुआ है। लेकिन तू पवित्र है और फिर तू तो किसी और ग्रह से आया है....." 


राजकुमार ने जवाब नहीं दिया। 


"मुझे तुझ पर दया आती है। इस पत्थरों की पृथ्वी पर इतना कमजोर दिख रहा है," सांप बोला, “मैं तेरी मदद कर सकता हूं। यदि तुझे अपने ग्रह की याद आए तो मैं ...." 


"मैं समझ गया, समझ गया," राजकुमार बोला, “पर हर समय तू पहेलियां क्यों बूझाता है?" 


“मैं उन्हें हल भी कर लेता हूं," सांप बोला। और फिर वे चुप हो गए। 








18


पूरा रेगिस्तान पार करते हुए राजकुमार को बस एक फूल मिला, तीन पंखुड़ियों वाला, साधारण सा फूल ...! 


"नमस्ते," राजकुमार ने कहा। 


"नमस्ते," फूल ने जवाब दिया। 




"आदमी लोग कहां हैं?" 


कुछ दिन पहले फूल ने एक काफिला गुजरते देखा था। 


"आदमी लोग? मेरे ख्याल से कुल छह-सात आदमी होंगे धरती पर। उन्हें गुजरते देखा था मैंने कई साल पहले। लेकिन अब कहां मिलेंगे, मुझे मालूम नहीं। हवा उन्हें यहां से बहा ले जाती है - इधर-उधर, उनकी कोई जड़ें नहीं हैं और इसीलिए वे खानाबदोश होते हैं।" 


"अलविदा," राजकुमार ने कहा। 


"अलविदा।"








19

नन्हा राजकुमार एक ऊंचे पहाड़ पर गया। तब तक उसने तीन ज्वालामुखी पहाड़ों के अतिरिक्त कोई और पहाड़ नहीं देखा था। उसके ग्रह के पहाड़ केवल उसके घुटनों तक आते थे। अपने सुप्त ज्वालामुखी को वो एक स्टूल की तरह इस्तेमाल करता था। उसने सोचा कि इतने ऊंचे पहाड़ की चोटी से तो वो पूरी धरती और सारे मनुष्यों को एक-साथ देख लेगा।... लेकिन उसे केवल ऊंची-ऊंची चोटियां दिखाई पड़ी। 


"नमस्कार," नम्रता पूर्वक उसने कहा। 


"नमस्कार ... नमस्कार ... नमस्कार ... " की गूंज उसे सुनाई पड़ी। 


"कौन हैं आप?" 



"कौन हैं आप... कौन हैं आप... । कौन हैं आप... आप।" गूंज उठी। 


"मेरे दोस्त बन जाइए। मैं एकाकी हूं - मैं एकाकी हूं।"


अजीब है यह ग्रह, उसने सोचा, एकदम सूखा, नोकों वाला, खरा। यहां के लोगों के पास कल्पनाशक्ति नहीं है। जो कहो दोहरा देते हैं... मेरे वहां मेरा फूल हरदम बोलने में पहल करता है। अपनी ही बात करना जानता है।






20

अंत में रेगिस्तान, पहाड़, और बर्फीले मैदानों में भटकते-भटकते नन्हे राजकुमार को एक रास्ता दिखाई पड़ा - और रास्ते आदमियों तक ले जाते हैं। 


"नमस्कार," एक फूलों से लदे बाग को देखकर उसने कहा। 


"नमस्कार," गुलाब के फूलों ने उत्तर दिया। 


राजकुमार ने देखा। वे सब उसके अपने ही फूल की तरह थे। 


"कौन हैं आप?" चकित होकर उसने पूछा। 


"हम लोग गुलाब के फूल हैं।" 


"अच्छा !" 


"अच्छा!" 


वह उदास हो गया। उसके फूल ने उससे कहा था कि ब्रहमांड में वह अपने ढंग का निराला फूल है। और यहां केवल एक ही बगीचे में उसके जैसे हजारों फूल खिल रहे थे। 






उसने सोचा कि अगर वो इन्हें देख ले तो परेशान हो जाएगा। उससे वह तरह-तरह के बहाने बनाएगा जैसे मर रहा हो ताकि उस हास्यास्पद स्थित से उबर सके। और मुझे भी उसकी सेवा करने का नाटक करना पड़ेगा। नहीं तो मुझे नीचा दिखाने के लिए वह सचमुच मर जाएगा। 


वह सोचता रहा, मैं अपने को उस निराले फूल के कारण भाग्यशाली समझता था, पर वह एक साधारण फूल निकला। 


एक फूल और तीन घुटने भर के ज्वालामुखी जिसमें एक शायद हमेशा के लिए सुप्त हो गया है - इतने मात्र से मैं एक ऐश्वर्यशाली राजकुमार नहीं हो सकता। घास पर लेटे-लेटे उसकी आंखों से आंसू बरसने लगे।


























21

तभी कहीं से एक लोमड़ी आ गई। 


"नमस्कार," लोमड़ी बोली। 


"नमस्कार," मुड़कर नन्हे राजकुमार ने जवाब दिया। पर उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ा। 


"मैं यहां हूं।" सेब के पेड़ के नीचे से आवाज आई। 


"कौन यह तू? अच्छी खासी लग रही है देखने में।" 


"मैं लोमडी हूं।" 


"आओ खेलें। मैं बड़ा उदास हूं....." 


"कैसे खेलूं तुम्हारे साथ? तूने मुझे अपनाया तो है नहीं," लोमड़ी ने कहा। 


"माफ करना," थोड़ा सोच कर बोला, “अपनाने का मतलब?"




"तू यहां का रहने वाला नहीं मालूम होता। क्या कर रहा है यहां?" लोमड़ी ने पूछा। 


"मैं आदमियों को ढूंढ रहा हूं। अपनाने का क्या अर्थ होता है?" 


"आदमी, उनके पास बंदूक होती है और वे बस शिकार खेलते हैं। बड़ी मुश्किल हो जाती है। वे मुर्गियां भी पालते हैं। उन्हें और कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या तुम मुर्गियां खोज रहे हो?" 


"नहीं, नहीं। मैं तो दोस्त ढूंढ रहा हूं। पालने का मतलब?" 


"पुरानी बात है। उसका मतलब होता है संबंध स्थापित करना।" 


"संबंध स्थापित करना?" 


"और क्या!" लोमड़ी बोली, "तू मेरे लिए हजारों बच्चों जैसा एक बच्चा मात्र है और मुझे तेरी कोई जरूरत नहीं है। न ही तुझे मेरी जरूरत है। तेरे लिए मैं लाखों लोमड़ियों जैसे एक लोमड़ी भर हूं। लेकिन यदि तू मुझे अपना ले तो हम दोनों को एक-दूसरे की जरूरत रहेगी। तू मेरे लिए और मैं तेरे लिए दुनिया में बस एक - अद्वितीय हो जाएंगे।" 


"मेरी समझ में आ रहा है कुछ-कुछ। एक फूल है .... मेरे ख्याल से उसने मुझे अपना लिया है।" 


"अच्छा तो यह इस धरती की बात नहीं है।" 


लोमड़ी की समझ में नहीं आ रहा था, "किसी और ग्रह पर?" 


"हां" 


"वहां शिकारी होते हैं?" 


"नहीं तो।" 


"यह तो अच्छी बात है। और मुर्गियां?" 


"नहीं।" 


"हर जगह कोई-न-कोई कमी होती ही है," लोमड़ी फिर अपनी बात पर आ गई। 


"बड़ी एकरसता है जीवन में। मैं मुर्गियों का शिकार करती हूं, और आदमी मेरा। सारी मुर्गियां - सारी लोमड़ियां एक-जैसी होती हैं। मुझे बड़ी उलझन होती है। लेकिन यदि तू मुझे अपना ले तो मेरा जीवन खिल उठेगा। मुझे तेरे कदमों की आवाज दूसरी आवाजों से भिन्न लगेगी। किसी के आने की आहट सुनकर मैं अपनी मांद में भाग कर छिप जाती हूं। लेकिन तेरी आहट में मुझे संगीत सुनाई पड़ेगा और मैं मांद से बाहर आ जाऊंगी। देख! वे गेहूं के खेत देख रहा है न? मैं रोटी नहीं खाती। मेरे लिए गेहूं बेकार की चीज है। गेहूं के खेत देखकर मुझे किसी की याद नहीं आती! यह अच्छी बात नहीं। लेकिन तेरी आंखें सुनहरी हैं। कितना अच्छा होगा यदि तू मुझे अपना लेगा। सुनहरे गेहूं देखकर मुझे तेरी याद आएगी, और मुझे गेहूं को दुलारती हवा की आहट अच्छी लगने लगेगी.... " 


लोमड़ी चुप हो गई और देर तक नन्हे राजकुमार को निहारती रही।


"सुना तूने ... अपना ले मुझे।" 


"मुझे कोई एतराज नहीं, लेकिन समय कहां है। मुझे दोस्त ढूंढने हैं और बहुत सारी बातें जाननी हैं।" 


"आदमी उसी को जान पाता है जिसे अपना लेता है," लोमड़ी बोली, "आज आदमी के पास वक्त नहीं है कि कुछ जान सके। दुकान पर बनी-बनाई चीजें खरीद लेता है और चूंकि दोस्त बिकते नहीं, आदमी के दोस्त नहीं रहे। अगर तुझे दोस्त चाहिए तो मुझे अपना ले।" 


"क्या करना होगा उसके लिए?"


"उसके लिए धैर्य चाहिए," लोमड़ी बोली, “पहले तुझे मुझ से दूर घास में बैठना पड़ेगा। मैं तुझे छिपकर आंख के कोने से देखूगी और तू कुछ नहीं बोलेगा। बातों से ही बात बिगड़ती है। लेकिन इस प्रकार हर दिन तू थोड़ा निकट आता जाएगा।" 


दूसरे दिन नन्हा राजकुमार फिर आया। 


"आने का एक समय होना चाहिए," लोमड़ी ने कहा, “मान लें कि तू चार बजे आता है। तीन बजे से ही मुझे अच्छा लगने लगेगा। जैसे-जैसे समय बीतेगा मेरी खुशी बढ़ती जाएगी। चार बजते-बजते मुझे बेचैनी होने लगेगी। मैं चिन्तित हो जाऊंगी। सुख का मूल्य समझ में आ जाएगा। लेकिन अगर तेरे आने का समय निश्चित न हो तो मुझे कैसे पता चलेगा? किस समय मन को संजोकर तेरा इंतजार करूं... कुछ रीतियां तो चाहिए ही।" 


"रीति का मतलब?" "वह भी पुरानी बात है। आज जो करो कल पुराना पड़ जाता है। हर क्षण बात बदलती रहती है। शिकारियों में एक चलन है। हर बृहस्पतिवार को वे गांव की लड़कियों के साथ नाचते हैं। बृहस्पतिवार एक खुशी का दिन होता है। उस दिन मैं अंगूर के खेतों तक जा सकती हूं! अगर शिकारी जब मन चाहे तब नाचते होते तो मैं तो कभी वहां नहीं जा पाती। हर समय डर बना रहता।" 


फिर तो राजकुमार ने लोमड़ी को अपना लिया। और जब इसके लिए जाने का दिन नजदीक आ गया, "मैं रोऊंगी," लोमड़ी बोली। 



"तेरी ही तो गलती है। मैंने तेरा बुरा थोड़े ही चाहा था। तूने ही तो चाहा था कि मैं तुझे अपना लूं।" 


"यह तो ठीक है," लोमड़ी बोली। 


"फिर आंसू बहाओगी।" "हां।" "तुझे क्या मिला मुझे अपनाने से?" "मिला। गेहूं के खेतों के रंग में," फिर बोली, “जाकर गुलाबों को फिर से देख और तुझे समझ में आ जाएगा कि तेरा गुलाब अद्वितीय है। फिर मुझे अलविदा कहने आना। मैं तुझे उपहार स्वरूप एक रहस्य बताऊंगी।" 


राजकुमार गुलाबों के पास गया, “तुम लोग मेरे गुलाब जैसे बिल्कुल नहीं हो," वह बोला, “तुम सब नगण्य हो किसी ने तुम्हें अपनाया नहीं। न ही तुमने किसी को अपनाया। तुम वैसे ही हो जैसी मेरी लोमड़ी थी बिल्कुल हजारों और लोमड़ियों की तरह। लेकिन मैंने उसे अपना दोस्त बना लिया और अब मेरे लिए वह अद्वितीय है।" गुलाब के फूलों की गर्दन शर्म से झुक गई। 


"तुम सुंदर हो पर खोखले," उसने फिर कहा, “कोई तुम पर जान नहीं देता। वैसे देख कर कोई मेरे फूल को तुम जैसा ही कह देगा। लेकिन अकेला वही मेरे लिए महत्व रखता है क्योंकि बस उसी को मैंने सींचा है, केवल उसी को मैंने हवा के झोंकों से बचाया है, केवल उसी पर लगे कीडों को मैंने मारा है। एक-दो छोडकर ताकि उनमें से तितलियां निकल सकें। केवल उसी की शिकायत, दम्भ और चुप्पी के स्वर मैंने सुने हैं। केवल वही मेरा है..." 


यह कह कर वह लोमडी के पास लौट गया, "अलविदा," उसने कहा।

 

"अलविदा," लोमड़ी बोली, “यह रहा, मेरा सीधा सा रहस्य - आदमी आंख से नहीं, दिल से देखता है। खास बात आंखों से दिखाई नहीं देती।" 


"खास बात आंखों से नहीं दिखाई देती।" याद करने के लिए उसने दोहराया।


"तुम्हारा गुलाब आज तुम्हारे लिए इतना महत्वपूर्ण इसीलिए है कि तूने उस पर इतना समय लगाया है।"  


राजकुमार ने इस बात को भी दोहराया, “आदमी इस सत्य को भी भूल गया है," लोमड़ी बोली, "लेकिन तू इसे मत भूलना - जिसे तू अपनाता है उसके प्रति तेरा दायित्व हो जाता है, हमेशा के लिए, अपने गुलाब के प्रति तू उत्तरदायी है .. " 


"मेरे गुलाब के प्रति मेरा कुछ दायित्व है," राजकुमार ने दोहराया। 
















22

"नमस्कार।" "नमस्कार," सिग्नल-मैन ने कहा। 


"क्या कर रहे हो यहां?" 


"मैं हजारों के झुंड में यात्रियों को चुनता हूं। मैं उन गाड़ियों को दाएं-बाएं भेजता हूं जिनमें यात्री होते हैं।" 


एक तूफान मेल बिजली की तरह गरजता है और पूरे केबिन को हिलाता हुआ तेजी से गुजर जाता है। 


"ये लोग बड़ी जल्दी में हैं। क्या चाहते हैं ये," राजकुमार ने पूछा। 


"ड्राइवर को खुद नहीं मालूम।" 


दूसरी ओर से एक और गाड़ी शोर मचाती हुई गुजर गई। 


"अरे यह लौट भी आए," राजकुमार ने पूछा। 


"वही लोग नहीं थे ये। यह तो दूसरी गाड़ी थी।"  



"जहां थे वहां संतुष्ट नहीं थे ये क्या?" राजकुमार ने पूछा। 


"आदमी जहां है वहां कभी संतुष्ट नहीं रहता।" 


फिर एक गाड़ी गुजरी। "ये लोग पहले यात्रियों के पीछे जा रहे हैं?" 


"ये कुछ करते नहीं। अंदर बैठे सो रहे होंगे या जम्हाई ले रहे होंगे, बस बच्चे खिड़की से नाक रगड़ते कुछ देख रहे होंगे।" 


"बस बच्चे जानते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए," राजकुमार ने कहा, “चिथड़ों से बनी गुड़िया से घंटों खेलते रहते हैं। उनके लिए महत्वपूर्ण बन जाती है। और अगर कोई उनकी गुड़िया ले ले तो रोने लगते हैं...." 


"वे ही अच्छे हैं," सिग्नल-मैन ने कहा। 


"नमस्कार।" 


"नमस्कार," दुकानदार ने जवाब दिया। दुकानदार ऐसी गोली बेच रहा था जिससे प्यास शांत हो जाए - हफ्ते में बस एक गोली खाएं और प्यास बिल्कुल न लगे। 


"क्यों बेच रहे हो यह सब?" राजकुमार ने पूछा। 


"कितना वक्त बचता है इससे," दुकानदार बोला, “जानकार लोगों ने हिसाब लगाया है हफ्ते में तिरपन मिनट बचते हैं इससे।"


"इन तिरपन मिनटों का क्या इस्तेमाल है?" 


"आदमी जो चाहे करे इनका।"


"यदि तिरपन मिनट बिताने हों तो मैं धीरे-धीरे एक फव्वारे के पास चला जाऊंगा....."










24

मशीन बिगड़े आठ दिन हो गए थे। राजकुमार से दुकानदार की कहानी सुनते समय मैंने पानी की आखिरी चूंट पी डाली थी। 


"तेरी कहानी दिलचस्प है पर मेरा जहाज अभी तक ठीक नहीं हुआ और मेरे पास पीने को अब कुछ नहीं बचा है। एक फव्वारे की ओर चलने में मुझे बड़ी खुशी होगी।" 


"मेरे दोस्त लोमड़ी..." मुझसे राजकुमार बोला। 


"नन्हे-मुन्ने, छोड़ो लोमड़ी को।"


"क्यों?" 


"क्योंकि हम प्यास से मरने वाले हैं।" 


मेरा तर्क उसको समझ में नहीं आया। वह बोला, "मर जायेंगे तो क्या हुआ! एक दोस्त मिला था, इससे संतोष नहीं होता। मुझे .... मुझे तो बड़ी खुशी है कि मुझे लोमड़ी जैसा आखिर कोई दोस्त मिला ...." 


मैंने सोचा यह खतरे से बेखबर है, इसे कभी न भूख लगेगी, न प्यास। उसका काम बस धूप से ही चल जाता है। मुझे देखकर उसने जवाब दिया, “मुझे भी प्यास लगी है। आओ कहीं कुआं ढूंढें।" 


मुझे एक प्रकार की निराशा हुई। कितनी बेकार की बात है, इस प्रकार के रेगिस्तान में कुआं। ढूंढना। फिर भी हम चल पड़े। कई घंटे चलते रहे। रात हो गई। तारे जगमगाने लगे। मुझे प्यास की वजह से बुखार था, मुझे लग रहा था जैसे मैं स्वप्न लोक में होऊ। राजकुमार के शब्द मेरी यादों में नाच से रहे थे। 


"तुझे भी प्यास लगी है न?" मैंने पूछा। 


मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला। उसने मुझसे सीधे से कहा, "पानी दिल की मजबूती के लिए भी जरूरी है..." 


मैं उसका जवाब समझा नहीं। पर मैं चुप हो गया। 


मुझे अच्छी तरह मालूम था कि उससे सवाल नहीं पूछना चाहिए। 


वह थक गया था। बैठ गया। मैं भी उसके पास ही बैठ गया। कुछ देर चुप रहा फिर वह बोला, “मेरा सितारा एक फूल की वजह से सुंदर है। परंतु फूल है कि दिखाई ही नहीं देता।"  


मैंने इस बात की पुष्टि की और चुपचाप चांदनी में रेत की सिलवटों को देखता रहा। 


"कितना सुंदर है रेगिस्तान," राजकुमार बोला। उसने सही ही कहा था। मुझे भी रेगिस्तान अच्छा लगता था। रेत के टीले पर बैठने पर चारों ओर देखें तो कुछ नहीं दिखाई देता है। कुछ सुनाई भी नहीं पड़ता है। परंतु फिर भी शांति में कुछ गूंजता सा लगता है। 


"रेगिस्तान इसलिए सुंदर है कि इसमें कहीं एक सोता छिपा है ...." 


अचानक मुझे रेत की चमक का रहस्य समझ में आ गया। मुझे बड़ा अचरज हुआ। जब मैं छोटा था तो एक पुराने घर में रहता था। उसके बारे में प्रचलित था कि उसके नीचे एक खजाना दबा पड़ा है। यह सच है कि न किसी ने उसे पाया, न ढूंढा लेकिन एक सम्मोहन था उस किंवदंती में कि मेरे घर में एक रहस्य छिपा है...


"हां," मैंने कहा, "चाहें घर हो, या तारे या रेगिस्तान उनके सौन्दर्य का कारण एक अदृश्य होता है।" 


"तू मेरी लोमड़ी की बात से सहमत है, इससे मुझे खुशी हुई," वह बोला।


राजकुमार थक कर सो गया था। मैंने उसे बाहों में उठा लिया और चल पड़ा। मेरा मन भर आया था। मुझे लग रहा था कि वह एक कमजोर खजाना हो - ऐसा लग रहा था जैसे इससे दुर्बल कोई चीज ही न हो इस धरती पर। 


चांदनी फैली हुई थी। मैंने उसका पीला ललाट, बंद आंखें, हवा में हिलते उसके धुंघराले बाल देखे और सोचने लगा. जो दिखाई दे रहा है वह केवल ऊपरी सतह है। मुख्य चीज तो अदृश्य है ! 


उसके अधखुले होठों में से एक मुस्कराहट झांक रही थी। मैंने सोचा, इस राजकुमार की जिस बात से मैं इतना प्रभावित हूं वह है इसके मन में एक फूल के लिए प्यार, उसी गुलाब के फूल की छाया इस पर उसी तरह व्याप्त है जैसे किसी चिराग की लौ। मुझे वह और कमजोर लगने लगा। लौ को हवा से बचाना चाहिए वरना वो एक झोंके में बुझ सकती है। इसी तरह चलते-चलते इधर सूरज की किरणें फूटी, उधर मुझे एक कुआं नजर आया।





























25

राजकुमार बोला, “आदमी लोग तेज गाड़ियों में भागते फिरते हैं, बिना जाने कि उन्हें किस चीज की तलाश है। बस कुछ करते रहते हैं कोल्हू के बैल की तरह ...." 


फिर उसने कहा, "क्या जरूरत है..." 


हम लोग जिस कुएं पर पहुंचे थे वह सहारा रेगिस्तान के अंध कुओं की तरह नहीं था। यहां के कुएं तो सीधे से रेत में किए गए सुराख से लगते हैं। यह तो किसी गांव का कुआं लगता था। लेकिन गांव कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। मुझे लगा कि वह सब सपना हो।


"कितनी अजीब बात है! सब कुछ तैयार है – घिरनी, रस्सी, बाल्टी।" उसे हंसी आ गई। उसने रस्सी को छू कर देखा, घिरनी पर रस्सी डालकर उसे घुमाने लगा। उससे आवाज होने लगी।


                                                 


"तूने सुना हम लोगों ने कुएं को जगा दिया और अब वह गा रहा है।" 


मैं नहीं चाहता था कि उसे कष्ट हो। 


“तेरे लिए बहुत भारी है वह। ला मैं भरता हूं पानी।" 


मैंने धीरे-धीरे बाल्टी को कुएं में उतारा, पानी पर बाल्टी रुकी। मेरे कानों में घिरनी के फिसलने का संगीत गूंज रहा था और हिलते पानी में धूप की छाया हिल रही थी। 


"मुझे इसी पानी की प्यास है। मुझे पानी दो....।" 


मेरी समझ में आ गया कि वह क्या ढूंढ रहा था। मैंने उसके होठों तक बाल्टी उठाई। उसने आंखें बंद करके गट-गट करके पानी पी लिया। उसका पानी पीना उत्सव की तरह भला लग रहा था। 


वह साधारण पानी नहीं था, वह सितारों की छांव में हमारी यात्रा, घिरनी के संगीत और बाजुओं के श्रम से जन्मा था। मन के लिए बलदायक था - जैसे एक उपहार। जब मैं छोटा था तो क्रिसमस में घर में सजा उपहारों से लदा पेड़, गिरजाघर में प्रार्थना का संगीत, मुस्कराहटों की मधुरता मिल कर उपहारों से मिली खुशी पर छा जाते थे। 


"इस धरती के आदमी," राजकुमार बोला, “एक बगीचे में हजारों गुलाब लगते हैं... और फिर उन्हें वह नहीं मिलता है जिसकी उन्हें तलाश है.... ।" 


"वे उसे ढूंढ नहीं पाते .... " मैंने प्रतिध्वनि की। 


"जब कि जिसकी उन्हें तलाश है वह एक फूल, थोड़े से पानी में ही मिल सकता था ...." 


"निश्चित ही," मैंने कहा। 


राजकुमार ने बात पूरी की, “आंखें अंधी होती हैं। हमें दिल से खोजना चाहिए।" 


मैंने भी पानी पी लिया था। सांस ठीक से चलने लगी थी। सूर्योदय के समय रेत का रंग शहद जैसा हो जाता है। मैं इस रंग के कारण भी खुश था। आखिर दुखी क्यों होऊ मैं .... !


"तुझे अपना वादा पूरा करना चाहिए," मेरे पास आकर बैठता हुआ वो बोला। 


"कौन सा वादा!" 


"वही 'जाबा', भेड़ का मुंह बंद करने के लिए.... फूल की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है।" 


मैंने जेब से रेखाचित्रों की कापी निकाली। चित्रों को देखकर हंसता हुआ बोला, "बाओबाब के चित्र गोभी जैसे लगते हैं।" 


“धत्!" 


अपनी समझ से मैंने बाओबाब के चित्र बहुत अच्छे बनाए थे। 


"अरे लोमड़ी ... उसके कान ... जैसे सींग हों.... कितने बड़े हैं।" वह हंसता ही रहा। 


"तू मेरे साथ नहीं रहा नन्हे-मुन्ने! मुझे खुले और बंद सांपों के अलावा और कुछ बनाना ही नहीं आता था।" 


"ओह! कोई बात नहीं! बच्चे समझ लेंगे।" 


मैंने पेन्सिल से एक 'जाबा' बनाया। उसको देते हुए डर ही लग रहा था। कि वह क्या कहेगा, “तेरी पता नहीं क्या-क्या योजनाएं हैं...।" 


मेरी बात से अलग जाकर उसने कहा, "जानते हो मेरा इस धरती पर आना.... कल उसको एक वर्ष हो जाएगा।" थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “मैं बिल्कुल यहीं कहीं उतरा था....।" 


वह लाल हो गया। 


न जाने क्यों एक बार फिर एक अजीब सी पीड़ा महसूस की मैंने। उसी समय एक प्रश्न उठा, “अच्छा तो यह संयोग नहीं था कि आठ दिन पहले, जब हमारी मुलाकात हुई, तो तू बस्ती से दूर, बहुत दूर, इस वीराने में अकेले घूम रहा था। तू उसी स्थान की ओर लौट रहा था, जहां तु पहले उतरा था।" 


नन्हे राजकुमार के मुंह पर फिर लाली दौड़ गई। 


सकुचाते हुए मैंने फिर कहा, "उस दिन वर्षगांठ के कारण न?"


राजकुमार फिर शर्मा गया। सवालों के जवाब नहीं देता था, "पर जब कोई शर्मा जाए तो उसका मतलब 'हां' होता है। है न?" 


"आह! मुझे डर लग रहा है ... ।" 


उसने उत्तर दिया, “तब मुझे एक काम करना चाहिए। अपने जहाज के पास वापिस जाना चाहिए। मैं यहां पर तेरा इंतजार करूंगा। कल शाम को आना ... ।" 


लेकिन में आश्वस्त नहीं हुआ। मुझे लोमड़ी की याद आई। किसी के निकट जाने का अर्थ होता है आंसुओं को निमंत्रण देना ....!

























26

उस कुएं के पास ही एक पत्थर की दीवार का खंडहर था। दूसरे दिन शाम को जब मैं काम कर के वहां लौटा तो नन्हा राजकुमार ऊंचाई पर पैर लटकाए बैठा हुआ था। मैंने सुना कि वह किसी से बातें कर रहा था। 


"तुझे याद नहीं!" वह कह रहा था। “एकदम यहां नहीं..." 


दूसरी आवाज ने उससे निश्चित ही कुछ कहा होगा, क्योंकि राजकुमार ने फिर जोर देकर कहा, "तुम्हें याद नहीं! आज ही है वह दिन, हां वह जगह नहीं है...." 


मैं दीवार की ओर बढ़ा। मैंने किसी को नहीं देखा वहां, कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ी। राजकुमार ने फिर से कहा, "... निश्चित ही। देखना मेरे उतरने के निशान बने हैं रेत में। मेरा इंतजार करना। मैं रात में वहां पहुंच जाऊंगा।" 


मैं दीवाल से कुल बीस मीटर दूर था फिर भी मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। 


एक चुप्पी के बाद राजकुमार ने फिर कहा, “तेरा जहर बहुत तेज है न? मुझे बहुत देर तक तकलीफ तो नहीं होगी?" 


मेरे दिल की धड़कन रुकती सी लगी। मैं रुक गया पर समझ में फिर कुछ नहीं आ रहा था। 



"अब जा तू उसने कहा... मैं उतरना चाहता हूं।" 


मैंने दीवार के नीचे झुक कर देखा और एक चीख निकल गई। यहीं राजकुमार की ओर मुखातिब था वह - पीला सांप जिसका काटा आधा मिनट के अंदर दम तोड़ देता है। हड़बड़ाहट में मैंने जेब से पिस्तौल निकाली और दौड़ने को हुआ पर मेरी आवाज पर सांप वैसे ही नीचे सिकुड़ गया जैसे फव्वारा बंद होने पर पानी की धार, और धीरे-धीरे एक खनखनाहट के साथ पत्थरों के बीच रेंग गया। 


भागकर मैं दीवार तक पहुंचा और नन्हे-मुन्ने से राजकुमार को बाहों में भर लिया। उसका चेहरा बर्फ जैसा हो रहा था।


"क्या हुआ? अब तू सांपों से बातें करता है?" 


मैंने उसका सुनहरा मफलर ढीला किया। उसकी कनपटी पर पानी छिड़का और पानी पिलाया। मेरी हिम्मत नहीं हुई कि उससे कुछ पूछ्रे वह मुझे चुपचाप देखता रहा और मेरी गर्दन में बाहें डाल दी। गोली खाकर मरती हुई चिड़िया की धड़कन की तरह मुझे उसकी धड़कन सुनाई पड़ रही थी।


उसने मुझसे कहा, "मैं बड़ा खुश हूं कि तेरा जहाज ठीक हो गया। अब तू घर लौट सकेगा...." 


"कैसे मालूम तुझे?" 


मैं तो उसे यही बताने आया था कि आशा नहीं थी पर मैं जहाज ठीक करने में सफल हो गया हूं। 


मेरे सवाल का जवाब दिए बिना अपनी ही बातें करने लगा, “मैं भी आज अपने घर जा रहा हूं...।" 


उदास होकर बुदबुदाया, “कितनी दूर है... कितना मुश्किल है ....!" 


मैंने महसूस किया कि कुछ असाधारण घट रहा है। मैंने उसे एक बच्चे की तरह बाहों में कस लिया था फिर भी लग रहा था कि वह किसी खाई की ओर बहकर मेरी पकड़ से बाहर जा रहा है और मैं असहाय हूं...! 


वह गम्भीर और कहीं दूर खोया-खोया सा लग रहा था, "मेरे पास तेरी दी हुई भेड़, उसको बंद करने वाला बक्सा और 'जाबा' है....।" 


विषादपूर्ण मुस्कान दिखाई पड़ी उसके चेहरे पर। 


मैं इंतजार करता रहा। लगा कि वह सहज हो रहा है धीरे-धीरे।


"नन्हे-मुन्ने तुझे डर लगा था... "


डर तो लगा था लेकिन वह धीरे से हंसा, "आज शाम को और डर लगेगा।" 


जैसे कुछ टूट गया हो अंदर से। मेरी नसें ठंडी पड़ने लगीं। मुझे लगा कि वह ख्याल मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा कि यह हंसी मैं आखिरी बार सुन रहा हूं। वह हंसी मेरे लिए रेगिस्तान में मिले पानी के सोते जैसी थी। 


"नन्हे-मुन्ने! मैं तुझे फिर से हंसते हुए सुनना चाहता हूं....!" 


लेकिन उसने मुझसे कहा, “आज रात एक साल पूरा हो जाएगा। मेरा ग्रह उस जगह के ऊपर आ जाएगा जहां मैं उतरा था पिछले साल....!" 


"नन्हे-मुन्ने! बोल यह एक दुःस्वप्न जैसा है कि नहीं? यह सांप, मिलने की बात, तेरा ग्रह ... !"  


मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला। वह बोला, "खास बात दिखाई नहीं पड़ती।" 


"यह तो है.. "


फूल की बात लो। अगर तुझे किसी फूल से प्यार है, जो किसी दूर के तारे पर खिला हो तो तुझे लगेगा जैसे सारे सितारे खिल उठे हों।"



"लगेगा तो...!" 


"जैसे पानी की ही बात है। कल जो पानी तूने मुझे पीने को दिया वह घिरनी और रस्सी के कारण संगीत सा लगा ... याद है न.... बढ़िया था वह पानी।" 


"था तो!"


"रातों को सितारों की ओर देखना। मेरा ग्रह इतना छोटा है कि यहां से दिखेगा भी नहीं। लेकिन यह अच्छा ही है। मेरा तारा इन्हीं तारों में से एक होगा और तुझे इन सबको देखना अच्छा लगेगा.... ये सब तेरे दोस्त रहेंगे और फिर मैं तुझे एक उपहार भी दूंगा... !" वह हंसने लगा। "सच कितनी अच्छी लगती है तेरी हंसी मेरे नन्हे-मुन्ने!" "यही तो है मेरा उपहार जैसे कि पानी .....!" "क्या मतलब?" "हर कोई सितारों को अपनी तरह देखता है। किसी के लिए ये मार्गदर्शक का काम करते हैं। दूसरों के लिए टिमटिमाते दीपों के अतिरिक्त कुछ नहीं। वैज्ञानिकों के लिए वे समस्यायें हैं। जिस व्यवसायी से मैं मिला था उसके लिए वे धन हैं। लेकिन ये सारे सितारे चुप रहते हैं। तेरे पास ऐसे सितारे होंगे जैसे किसी के नहीं।" "क्या मतलब?" "जब तू आसमान की ओर देखेगा रात को चूंकि मैं भी उनमें से एक सितारे पर होऊंगा, तुझे लगेगा कि सारे सितारे हंस रहे हों। इस तरह सितारों को हंसना भी आएगा।"


और फिर वह हंसने लगा। "और जब तुझे तसल्ली हो जाएगी (आदमी किसी तरह खुद को तसल्ली दे ही लेता है) तो तुझे यह सोचकर अच्छा लगेगा कि तू मुझसे मिला था। तू हमेशा-हमेशा के लिए मेरा दोस्त बना रहेगा। तेरा मेरे साथ हंसने को जी चाहेगा और तू कभी-कभी ऐसे ही मजे के लिए अपनी खिड़की खोल देगा। तेरे दोस्त आसमान की ओर देख कर तुझे हंसते देख कर चकित रह जाएंगे। तब उनसे कहना, मुझे सितारों को देख कर हंसने का मन करता है। यह सुनकर वे तुझे पागल समझेंगे। अच्छा बेवकूफ बनाया मैंने तुझे!" वह फिर हंसने लगा।


"जैसे मैंने तुझे सितारों की जगह छोटी-छोटी घंटियां दे दी हों जिन्हें हंसना आता हो।" वह फिर हंसा और गम्भीर हो गया, “यह रात.... जानते हो.... आना मत।"


"नहीं, मैं तुझे विदा करूंगा।" 


"तुझे लगेगा कि मुझे कष्ट हो रहा है... ऐसा लगेगा कि मेरी मृत्यु हो रही है। यह मत देखना। क्या जरूरत है.... .. मत देखना।" 


"मैं तुझे जाने नहीं दूंगा।" 


वह चिन्तित था। "यह मैं इसलिए कर रहा हूं... सांप की वजह से, ऐसा हो कि वह मुझे काटे न - सांप होते ही दुष्ट हैं। महज खुशी के लिए काट सकते हैं ...।" 


"मैं तेरे पास नहीं जाऊंगा।"  


वह अचानक थोड़ा आश्वस्त लगा। वह बोला, "लेकिन दूसरी बार काटने पर उसका असर जहरीला नहीं होता..।" 


मैंने उस रात उसे रवाना होते नहीं देखा। चुपचाप वह कहीं चला गया था। जब मैं उसे ढूंढकर उस तक पहुंचा वह निर्णय ले चुका था और तेज कदमों से आगे बढ़ा जा रहा था। उसने इतना ही कहा, “अच्छा तू...?" उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। अंदर से उद्विग्न था वह, “तूने ठीक नहीं किया," राजकुमार बोला, “तुझे दुख होगा। लगेगा कि मैं मर रहा हूं पर वास्तविकता कुछ और होगी ....."


मैं चुप था। "समझ रहे हो न! कितनी दूर जाना है। मैं इस भारी शरीर को वहां तक नहीं ले जा सकता।" 


मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। वह थोड़ा हतोत्साहित लगा, पर फिर हिम्मत करके उसने कहा, 


"कितना अच्छा लगेगा। मैं भी सितारों को निहारूंगा। सारे तारे घिरनी वाले कुओं जैसे लगेंगे। सब मेरी अंजुली में पानी भरते से लगेंगे.... ।"


मैं चुप ही था। 


"कितना मजा आएगा। तेरे पास होंगी करोड़ों घंटियां और मेरे पास करोड़ों सोते .... ।" 


आगे वह कुछ बोल न सका। उसकी आंखों से भी आंसू झरने लगे थे...। कहने लगा, 


“मुझे अकेले जाने दो वहां।" 


वह बैठ गया क्योंकि वह डरा हुआ लग रहा था। पर फिर बोला, 


“जानते हो .... मेरा फूल .... मेरा कुछ दायित्व है उसके प्रति। इतना दुर्बल है वह, इतना मासूम। उसके पास बेकार के चार कांटे हैं सारी दुनिया से जूझने के लिए...।" 



मुझसे खड़ा नहीं रहा गया। मैं बैठ गया। वह बोला, 


“लो! बस... !" 


थोड़ा रुका वह, फिर उठा, एक कदम आगे बढ़ा। मैं मूर्तिवत बैठा हुआ था। बस एक पीली सी रोशनी हुई उसकी एड़ी के पास। क्षण भर को वह निस्पन्द और स्तब्ध रहा फिर वह एक कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा। रेत की वजह से आवाज भी नहीं हुई। 


27

छः साल बीत गए.... मैंने कभी नहीं सुनाई यह कहानी। मेरे जिंदा वापिस आने पर मेरे दोस्त खुश हुए थे! मैं उदास था लेकिन मैंने उनसे कहा, "कुछ नहीं बस थका हुआ हूं...।"


अब कुछ संभला हूं पर पूरी तरह नहीं। मैं नहीं जानता हूं कि वह अपने घर पहुंच गया। क्योंकि दूसरे दिन सुबह मैंने उसका शरीर वहां नहीं पाया था। उतना भारी नहीं था उसका शरीर ... रात को मैं सितारों की आवाज सुनता हूं मानों करोड़ों घंटियां बज रही हों....।


लेकिन कुछ असाधारण घट गया कि मैंने जो ‘जाबा' बनाया था उसकी भेड़ के लिए उनमें मैं चमड़े की पट्टी लगाना भूल गया था। सोचता हूं - क्या हो रहा होगा वहां। कहीं भेड़ ने उसका फूल चर न लिया हो...। कभी-कभी सोचता हूं ऐसा नहीं हो सकता। राजकुमार रात को अपने फूल को शीशे से ढंकने से ढक देता होगा


और भेड़ पर ख्याल रखता होगा। ... तब थोड़ी खुशी होती है और सितारों का मृदहास सुनाई पड़ता है। फिर सोचता हूं, “कभी-कभी आदमी भूल जाता है और एक भूल काफी है। एक रात वह फूल को ढकना भूल गया होगा या भेड़ ही चुपचाप बक्से से निकल पड़ी होगी...। और फिर तारों की घाटियां आंसुओं में बदल जाती हैं।" 


कितना अद्भुत है यह रहस्य मेरे लिए , और आपके लिए भी जो मेरी ही तरह नन्हे राजकुमार से प्यार करने लगे हैं। हमारे लिए यह जानने से बढ़ कर कुछ भी नहीं है कि एक भेड़ जिसे हम जानते भी नहीं, कहीं एक निराले से गुलाब को चर गई या वह अभी खिला हुआ हमारे नन्हे-मुन्ने का जीवन संवारे हुए है। आसमान की ओर देखिए और पूछिए कि भेड़ उस गुलाब को चर गई कि नहीं! और देखिएगा कैसे सब कुछ बदल जाएगा। और ... और बड़े-बूढ़े नहीं समझेंगे कि ऐसी बातों का कोई महत्व भी होता है।


यह मेरे संसार का सुंदरतम और सबसे विषादपूर्ण दृश्य है। यह वही दृश्य है जो पहले भी देखा। पर मैंने एक बार और इसलिए बनाया है कि आपको ठीक से दिखा सकू। यहीं जन्मा था मेरा नन्हा राजकुमार इस धरती पर और फिर यहीं से विलीन हो गया। इसे ठीक से देख लें ताकि यदि आप अफ्रीका भ्रमण पर निकलें हों और रेगिस्तान में ऐसा ही कुछ दिखाई पड़े तो आप उसे फौरन पहचान लेंगे। 


यदि आप को उधर से गुजरने का अवसर मिले तो मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं वहां से यूं ही मन जाइएगा। एक क्षण को तारे के नीचे इंतजार करिएगा। अगर कोई हंसता हुआ बच्चा आप तक आए, उसक बाल सुनहरे हों और यदि वह आपके प्रश्नों के उत्तर न दे तो आप समझ लीजिएगा कि वह कौन है और फिर मेहरबानी करके, मेरी उदासी का ख्याल करके, मुझे फौरन लिखिएगा कि 'वह' लौट आया है।


समाप्त





Popular Posts